शनि प्रदोष व्रत पर न्याय के देवता शनिदेव की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। व्रत रखने से मनचाही मुराद पूरी होती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। न्याय के देवता शनिदेव के आराध्य भगवान श्रीकृष्ण हैं। अपने पिता सूर्य देव के कहने पर शनिदेव ने देवों के देव महादेव की कठिन तपस्या की थी। इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शनिदेव को न्याय करने का अधिकार दिया था। इसके साथ ही शनिदेव को मोक्ष प्रदान करने का भी वरदान दिया। सनातन शास्त्रों में निहित है कि भगवान कृष्ण ने शनिदेव को कोकिला रूप में दर्शन दिये थे। इसके लिए कोकिला वन में शनिदेव का सिद्ध मंदिर है। शनि प्रदोष व्रत पर न्याय के देवता की भक्ति भाव से पूजा की जाती है।
साथ ही मनचाही मुराद पाने के लिए व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से मनचाही मुराद पूरी होती है। अगर आप भी भगवान शिव की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो शनि प्रदोष व्रत पर भक्ति भाव से शिव-पार्वती की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय मंगलकारी गोपाल स्तोत्र का पाठ करें। यह भी पढ़ें: प्रदोष व्रत के दिन पूजा के समय करें ये उपाय, शनि की बाधा हो जाएगी दूर संतान गोपाल स्तोत्रम् (संतन गोपाल स्तोत्र) श्रीशं कमलपत्राक्षं देवकीनन्दनं हरिम् । सुतसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि मधुसूदनम् ॥1॥ नमाम्यहं वासुदेवं सुतसम्प्राप्तये हरिम् । यशोदांकगतं बालं गोपालं नन्दनन्दनम् ॥ अस्माकं पुत्रलाभाय गोविन्दं मुनिवन्दितम् । नमाम्यहं वासुदेवं देवकीनन्दनं सदा ॥ गोपालं डिम्भकं वन्दे कमलापतिमच्युतम् । पुत्रसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि यदुपुंगवम् ॥ पुत्रकामेष्टिफलदं कंजाक्षं कमलापतिम् । देवकीनन्दनं वन्दे सुतसम्प्राप्तये मम ॥ पद्मापते पद्मनेत्र पद्मनाभ जनार्दन । देहि में तनयं श्रीश वासुदेव जगत्पते ॥ यशोदांकगतं बालं गोविन्दं मुनिवन्दितम् । अस्माकं पुत्रलाभाय नमामि श्रीशमच्युतम् ॥ श्रीपते देवदेवेश दीनार्तिहरणाच्युत । गोविन्द मे सुतं देहि नमामि त्वां जनार्दन ॥ भक्तकामद गोविन्द भक्तं रक्ष शुभप्रद । देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥ रुक्मिणीनाथ सर्वेश देहि मे तनयं सदा । भक्तमन्दार पद्माक्ष त्वामहं शरणं गत: ॥ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥ वासुदेव जगद्वन्द्य श्रीपते पुरुषोत्तम । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥ कंजाक्ष कमलानाथ परकारुरुणिकोत्तम । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥ लक्ष्मीपते पद्मनाभ मुकुन्द मुनिवन्दित । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥ कार्यकारणरूपा
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