शरद पवार ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान बारामती इलाके में पहुंच कर एक इमोशनल कार्ड खेला है. लेकिन, ये नहीं साफ किया है कि उनका फैसला चुनाव न लड़ने तक ही सीमित है या राजनीति से संन्यास लेने का भी इरादा है - वैसे ये जोखिमभरा है, क्योंकि दोधारी तलवार भी साबित हो सकता है.
शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीतिक के दिग्गज तो हैं ही, देश की राजनीति में भी वो खास हैसियत रखते हैं. अपने अनुभव, काबिलियत और पार्टीलाइन से परे संबंधों को लेकर भी - और ऐसे में बाीरामती के मैदान से उनका संन्यास लेने जैसा बयान बड़ा इमोशनल कार्ड ही लगता है. ये तो नहीं साफ है कि आगे से वो चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं, लेकिन अभी ये नहीं मालूम कि वो राजनीति से भी संन्यास लेने का फैसला कर चुके हैं.
बारामती की एक लड़ाई वो जरूर जीत चुके हैं, लेकिन लोकसभा की ही तरह विधानसभा सीट जीतने के बाद ही साबित कर पाएंगे कि अजित पवार का अपना कुछ भी नहीं है, जो कुछ भी उनके पास है, सीनियर पवार का ही दिया हुआ है. शरद पवार ने 1996 से 2009 तक बारामती लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया है, और उसके बाद से सुप्रिया सुले लगातार चुनाव जीतती आ रही हैं, जिसमें सबसे मुश्कि्ल 2024 का चुनाव रहा है. बारामती विधानसभा सीट की बात करें तो शरद पवार 1990 तक चुनाव जीतते रहे, और उसके बाद से अजित पवार लगातार विधायक बने हुए हैं.
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