यह लेख शिव के तांडव के बारे में बताता है और यह कैसे प्राचीन वाद्य त्रिपुष्कर का जन्म हुआ। बताया गया है कि त्रिपुष्कर तीन भागों और चार मुखों वाला था और आज के सभी ताल वाद्य यंत्रों का पूर्वज है।
संगीत की किसी भी विधा की बात होती है तो उसकी शुरुआत के तार हमेशा महादेव शिव से जाकर जुड़ते हैं. शिव , जो कि संसार ही क्या ब्रह्मांड में होने वाली हर शुरुआत के भी शुरुआत हैं, उनका योग, उनका ध्यान, वाणी, नृत्य, स्वर और यहां तक मुद्राएं भी किसी न किसी विधा की ओर इंगित करती हैं. यही वजह है कि शिव को शस्त्र और शास्त्र दोनों की ही प्रेरणा माना जाता जाता है.
Advertisementतांडव है नृत्य के साथ वाद्य का भी जनकजहां एक तरफ उनका त्रिशूल संसार का सबसे प्राचीन हथियार है तो वहीं उनका डमरू, भाषा और लिपि के साथ स्वर और ताल की उत्पत्ति का भी केंद्र है. इसी डमरू की धुन पर जब वह नृत्य करते हैं तो प्रलय भी होती है और नवजीवन की शुरुआत भी है. सिर्फ आदि ऋषियों ने ही नहीं, बल्कि कई विदेशी (जर्मन, फ्रांसीसी और अंग्रेज) विद्वानों भी शिव के आदि नृत्य तांडव की बड़ी-बड़ी व्याख्या की हैं और इसे कास्मिक डांस ऑफ शिवा कहा है.शिव के भयंकर नृत्य से हुआ था प्राचीन वाद्य का जन्म!शिव के तांडव को दो स्वरूप हैं एक है आनंद तांडव और दूसरा रुद्र तांडव. रावण ने जब उन्हें शिव तांडव स्त्रोत सुनाकर उनकी स्तुति की तब शिव ने प्रसन्नता से आनंद तांडव ही किया था. इसके अलावा जब श्रीराम का जन्म हुआ था, तब भी शिव आनंद में खूब झूमे थे, लेकिन सतयुग में सती के दाह के वक्त उन्होंने रुद्र तांडव किया था. इसी तरह एक और प्रसंग आता है, जब शिव ने भयंकर नृत्य किया और इस नृत्य के कारण ताल वाद्य के सबसे प्राचीन वाद्य यंत्र का जन्म माना जाता है. Advertisementयह कहानी है, सबसे प्राचीन वाद्ययंत्र त्रिपुष्कर के जन्म की. शिवमहापुराण में इस कथा का जिक्र मिलता है, कथा कुछ ऐसी है जब शिवजी ने तारकासुर राक्षस का अंत कार्तिकेय के हाथों करा दिया तब उसके तीनों पुत्र तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली देवताओं के विद्रोही हो गए. उन्होंने ब्रह्माजी की कठिन तपस्या करके उनसे अमरता का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मदेव ने इससे मना कर दिया. तब तीनों ने अपने लिए सोने, चांदी और लोहे के तीन नगर बनाने का वरदान मांगा और कहा कि इन्हें नक्षत्र मंडल में स्थापित किया जाए. इनका अंत तभी हो जब ये कभी एक सीध में आएं. ऐसी स्थिति 1000 साल में सिर्फ एक बार आती और वह भी सिर्फ कुछ समय के लिए. ये तीनों नगर त्रिपुर कहलाए.जब राक्षसों के अत्याचार बहुत बढ़ गए, तब शिवजी ने ब्रह्मा के वरदान के अनुसार 1000 साल की उस विशेष स्थिति में त्रिपुर का अंत कर दिया. त्रिपुर के अंत के समय बहुत क्रोध में होने के कारण शिवजी क्रोध में भयंकर नृत्य करने लगे. इस नृत्य में न लय थी और न ही ताल. उनके पैरों की बिगड़ी थाप से धरती डगमगाने लगी और रसातल में जाने लगी. तब ब्रह्मा जी ने तीनों राक्षसों की मिट्टी हो चुकी देह को मिलाकर एक वाद्य यंत्र का निर्माण किया. Advertisementत्रिपुर के अंत के बाद बना था त्रिपुष्करइसमें एक हिस्सा चौड़ा था, दूसरा पतला और तीसरा गोद में रखकर बजाए जाने वाला. उन्होंने इस ताल वाद्य को श्रीगणेश को सौंपा और उनसे इस विघ्न को दूर करने के लिए कहा. गणेश जी ने इस वाद्य को बजाना शुरू किया और सबसे पहले शिवजी के पदचापों को इस पर आधारित किया. गणेशजी का वादन इतना मंत्रमुग्ध करने वाला था कि महादेव अपना क्रोध भूल गए और ताल के साथ पदताल मिलाते हुए नृत्य करने लगे. तब गणेश जी ने बड़ी सावधानी से नृत्य की गति को धीमा करते गए और ताल के सम स्थान पर नृत्य को रोका. इस तरह धरती असमय प्रलय के संकट से बच गई.यही कथा तालों के पठित बोलों का आधार बनी और इसी कथा को सबसे प्राचीन ताल आधारित वाद्ययंत्र त्रिपुष्कर का आविष्कार माना गया. आज त्रिपुष्कर बिल्कुल लुप्त हो चुका है, बल्कि 11वीं सदी के बाद से इसका जिक्र किसी चलन में नहीं मिलता. भरत मुनि के नाट्य शास्त्र और अन्य प्राचीन कलात्मक ग्रंथों में इस वाद्ययंत्र का न सिर्फ जिक्र मिलता है, बल्कि इसकी पूरी पद्धति का भी विवरण दर्ज है.प्राचीन शैल चित्रों पर भी मिलती है त्रिपुष्कर की झलकइसके अलावा 6वीं सदी से 9वीं सदी के कुछ प्राचीन पत्थरों पर उकेरी गई कालकृतियों में ही त्रिपुष्कर के दर्शन होते हैं, लेकिन ये बहुत स्पष्ट नहीं है. लिखित में भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में 'त्रिपुष्कर' वाद्य के बारे में जानकारी मिलती है, जिसमें मृदंग को एक प्रकार का पुष्कर वाद्य ही कहा गया है. भरत मुनि ने मृदंग को द्विपुष्कर कहा है, जिसमें इसके दो मुख हुआ करते थे, जिन पर चोट करके (ताल देकर) लय निकाली जाती थी. मिट्टी से बने होने के कारण ही इसे मृदंग और संस्कृत में मृदंगम कहा गया. दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत की परंपरा में मृदंग सबसे प्रमुख और सबसे प्राचीन ताल वाद्य है, जिसकी थाप और लय अभी भी जीवंत बनी हुई है.साल 2018 में फिर सामने आया त्रिपुष्करत्रिपुष्कर का खासियत को ऐसे समझिए कि यह पहला ऐसा वाद्ययंत्र था, जिसके तीन अंग और चार मुख हुआ करते थे. आज जितने भी प्रकार अनद्य तालवाद्य दिखाई दे रहे हैं, त्रिपुष्कर सभी का पूर्वज है. साल 2018 में भातखंडे संगीत संस्थान के शोधछात्र रहे सारंग पांडेय ने कई वर्षों की कठिन मेहनत और शोध-रिसर्च के बाद त्रिपुष्कर के स्वरूप को ढलवाया और उसका अनावरण भी कराया था. जिससे यह खोया हुआ वाद्ययंत्र फिर से जीवंत हो उठा. त्रिपुष्कर के बारे में और भी विवरण मिलेंगे शृंखला के अगले भाग में
शिव तांडव त्रिपुष्कर वाद्य यंत्र संगीत प्राचीन इतिहास
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