शीतल बिना हाथ के कैसे बनीं तीरंदाज, निशाना अब गोल्ड के लिए

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शीतल बिना हाथ के कैसे बनीं तीरंदाज, निशाना अब गोल्ड के लिए
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शीतल देवी का संघर्ष किसी भी व्यक्ति को प्रेरणा से भर देने वाला है.

क्या आप कल्पना कर सकते हैं किसी ऐसे तीरंदाज के बारे में जो बिना बांह के भी तीरंदाजी में स्वर्ण पदक जीतने के लिए निशाने लगाने की प्रैक्टिस कर रही हो.एक ट्रेनिंग अकादमी में अन्य तीरंदाजों से अलग शीतल देवी अपनी कुर्सी पर बैठकर धनुष पर तीर चढ़ाती हैं और लगभग 50 मीटर दूर ध्यान से अपने लक्ष्य पर निशाना लगाती हैं.

शीतल कहती हैं, “सोना जीतने के लिए मैं संकल्पित हूँ. अपने जीते हुए मेडल देखकर मैं और ज़्यादा मेडल जीतने के लिए प्रेरित होती हूँ. अभी तो मैंने बस शुरुआत की है.”तीरंदाजी पैरालंपिक खेलों का हिस्सा शुरुआती दौर 1960 से है, जब इन खेलों की शुरुआत हुई थी. या फिर संतुलन के अभाव में वो खड़े होकर या स्टूल का सहारा लेते हों. ऐसे में प्रतियोगी प्रतियोगिता के आधार पर या तो रिकर्व या फिर कंपाउंड तीर का इस्तेमाल करते हैं.2023 के पैरा आर्चरी वर्ल्ड चैम्पियनशिप में उन्होंने रजत पदक जीता था, जिसके सहारे वो पेरिस के लिए क्वॉलिफाई कर गईं.

चुनौती तो काफ़ी बड़ी थी लेकिन शीतल के कोच का लक्ष्य उनके पैरों और ऊपरी शरीर में ताक़त का अधिकतम लाभ उठाने के लिए कोशिश करना था, जिसमें वो अंततः सफल हुए. लेकिन शीतल का परिवार इस तरह की मशीन का खर्च नहीं उठा सकता था. इसलिए उनके कोच वेदवान ने उनके लिए धनुष बनाने का बीड़ा उठाया.

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