संथाल परगना में सोहराय: दोहरी खुशी का पर्व

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संथाल परगना में सोहराय: दोहरी खुशी का पर्व
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संथाल परगना में 10 जनवरी से 5 दिनों तक मनाया जाने वाला सोहराय पर्व एक रोचक कहानी से जुड़ा है।

जामताड़ा: संथाल परगना में आदिवासियों का प्रमुख त्योहार सोहराय 10 जनवरी से प्रारंभ हो रहा है। जो 5 दिनों तक मनाया जाएगा। इसको लेकर तैयारी जोर-शोर से की जा रही है। बहुत कम लोगों को पता है कि राज्य के संथाल परगना प्रमंडल को छोड़ अन्य प्रमंडल, बंगाल और ओडिशा में सोहराय दीपावली के समय मनाया जाता है। इस संबंध में जानकारी देते हुए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक सुशील मरांडी और मांझी परगना सरदार महासभा के अध्यक्ष प्रोफेसर सुनील कुमार हांसदा ने बताया कि संथाल परगना में सोहराय जनवरी महीने में

मनाया जाता है, जबकि अन्य जगहों पर दीपावली के समय। इसके पीछे एक रोचक कहानी है। हूल विद्रोह से जुड़ा है रिश्तासंथाल परगना प्रमंडल में सोहराय पर्व का रिश्ता अंग्रेजों के मार्शल लॉ और 1855 के संथाल हूल विद्रोह से जुड़ा है। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक सुनील बास्की और शिक्षाविद् प्रोफेसर सुनील कुमार हांसदा ने बताया कि संथाल परगना में सोहराय पर्व दोहरी खुशी लेकर आता है। खेतों में तैयार फसल काटने के बाद घर आ जाने से लोग खुश दिखते हैं। मार्शल लॉ खत्म होने पर सोहरायवहीं, 1855 में बड़ा संथाल हूल विद्रोह भी इस समय समाप्त हुआ था। इसके बाद संथाल परगना के लोगों को ब्रिटिश शासकों के अत्याचार से निजात मिली थी। जिस कारण लोग दोहरी खुशी के साथ सोहराय मानते हैं। बताया कि पूर्व में भी यहां दीपावली के समय चौराहे मानता था लेकिन 1855 में अंग्रेजों ने मार्शल लॉ लगा दिया जिसके कारण यहां के लोग सोहराय नहीं मना पाए थे। जब जनवरी महीने में मार्शल लॉ खत्म हुआ था तो सभी ने चौराहे पर मनाने का निर्णय लिया और फिर सोहराय मनाया। इस समय से संथाल परगना प्रमंडल में जनवरी के महीने में सोहराय मनाया जाता है। सोहराय के गीतों में अंग्रेजों से मुक्ति का जिक्रसंथाल परगना क्षेत्र में अंग्रेजों ने 1855 में दीपावली के समय धारा 144 और मार्शल लॉ लगा दिया था। जिस कारण आदिवासी सोहराय पर्व नहीं मना पा रहे थे। लेकिन जब 1856 में मार्शल लॉ खत्म हुआ तो लोगों ने सामूहिक रूप से सोहराय मनाने का निर्णय लिया। यही कारण है कि संथाल परगना में सोहराय दोहरी खुशी लेकर आता है। तभी से ही प्रत्येक वर्ष जनवरी में ये पर्व मनाया जाता है। यही कारण है कि सोहराय के गीतों में भी अंग्रेजों से मुक्ति का जिक्र रहता है

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