46 साल बाद भी संभल दंगे के भयावह मंजर को याद करने पर 97 साल के ओमकार शरण गुप्ता की आंखों से आंसू आ जाते हैं.
उत्तर प्रदेश का संभल मस्जिद विवाद के बाद से सुर्खियों में है. वहां लगातार मंदिर मिल रहे हैं और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की टीम खुदाई कर जांच करने में जुटी हुई है. इसी बीच संभल में साल 1978 में हुए दंगों की एक खौफनाक कहानी सामने आई. 97 साल के बुजुर्ग ने अपनी आपबीती बताते हुए कहा कि उस वक्त हिंसा का ऐसा माहौल था कि उनकी आंखों के सामने दुकान पर तेल छिड़कर फूंक दिया गया. लोगों को काटा जा रहा था. वही बच पाए जो छिप गए.
97 साल के बुजुर्ग ओंकार शरण गुप्ता की आंखें उस खौफनाक मंजर की याद आते ही रो पड़ती हैं. वो आज भी उस दंगे का नाम जुबान में लेते ही सिहर उठते हैं. दंगों का डर आज भी 97 साल के बुजुर्ग ओंकार शरण गुप्ता की आंखों में साफ नजर आता है, जिन्होंने 1978 में संभल में हुए दंगे की कहानी अपनी जुबानी बताई. उस खौफनाक मंजर की बुरी यादें उन्हें कचोटती रहीं. उनका परिवार आज भी सामने नहीं आना चाहता. वो उस दंश को भुलाने की कोशिश कर रहे हैं. ओमकार शरण गुप्ता रोते हुए कहानी बताते हैं कि कैसे इनकी दुकान में मिट्टी का तेल डाला गया. कैसे लोगों को काटा गया और कैसे जलाया गया. ओमकार जी बताते हैं कि इनकी दुकान खाद की थी, वो हर दिन दुकान जाते थे. उनको विश्वास नहीं था कि जिनको वो जानते हैं जिनसे हर दिन मुलाकात होती है वो ही उनकी दुकान को जला देंगे. उनकी दुकान को जला दिया गया. भागकर लोगों ने जान बचाई, जो मिला उसको मारा गया जो चौकी में छिपा वो ही बच पाया. याद करते-करते रोते हुए बताते हैं कि जिसको जानते थे उसी ने ऐसा किया. साल 1978 के बलवे को याद कर कहते हैं किसपे विश्वास करें कैसे विश्वास करें अब कोई विश्वास के लायक नहीं है. ये कहानी हर उस शख्स की है जिसने 1978 के बलवे के दंश को झेला है. संभल के सदर कोतवाली इलाके के दुर्गा कॉलोनी निवासी 97 साल के ओमकार शरण गुप्ता 46 साल बाद आज भी उस दंगे के भयावह मंजर को याद करने की कोशिश करते हैं तो आंखों से आंसू आ जाते हैं. जिन पर भरोसा किया जो रोज साथ रहते थे उन्होंने ही उजाड़ दिया
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