लेख भारत के संविधान पर चर्चा करता है, जो वर्तमान में राष्ट्रीय महत्व का विषय है। यह 1975-77 के आपातकाल के दौरान संविधान के संरक्षण की याद दिलाता है और इस संवैधानिक मूल्यों के प्रति समर्पण की आवश्यकता पर जोर देता है। लेख संविधान के महत्व और नागरिकों के प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालता है।
जगमोहन सिंह राजपूत। आजकल संविधान हर तरफ चर्चा में है, लेकिन यह पहली बार दिख रहा है कि संविधान के नए संरक्षक उसे बचाने के लिए सबसे अधिक उत्सुक दिख रहे हैं। यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि आखिर वे किससे संविधान को बचा रहे हैं? अच्छी बात यह है कि इस सबके बीच देश संविधान पर घातक आघात किए जाने के उन दो वर्षों को पुनः याद कर रहा है, जो उसने 1975-77 के मध्य झेले थे। स्वाभाविक है कि उन लोगों को भी याद किया जा रहा है, जिन्होंने संविधान को उस समय बचाया था। देश में जेपी जैसे स्वतंत्रता संग्राम के तपे हुए...
आंबेडकर और संविधान सभा के अन्य सदस्यों ने भी कभी नहीं की होगी। सामान्य नागरिक के लिए यह समझ पाना कठिन है कि जो सर्वोच्च न्यायालय यह निर्णय देता है कि संसद भी संविधान के मूल आत्मा से छेड़छाड़ नहीं कर सकती, वह आमुख के मूल स्वरूप में हुई छेड़छाड़ को कैसे स्वीकार कर लेता है। आंबेडकर और गांधीजी ने पश्चिम में शिक्षा ग्रहण की थी, लेकिन वे भारतीयों की उस श्रेणी में नहीं थे, जिन्हें पश्चिम की पढ़ाई ने अपने देश और संस्कृति से अलग कर दिया हो, जैसा अधिकांश विलायत में पढ़े लोगों के साथ हुआ। भारत, उसकी सामाजिक...
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