संविधान संशोधन: एक साथ चुनाव का प्रस्ताव

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संविधान संशोधन: एक साथ चुनाव का प्रस्ताव
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कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा। विपक्ष ने इसे लोकतंत्र के लिए हानिकारक बताया, जबकि सरकार ने कहा कि यह संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं है।

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 17 दिसंबर को लोकसभा में 129वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। इसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव था। इस विधेयक पर तीखी बहस हुई। 269 वोट पक्ष में और 198 वोट विपक्ष में पड़े। विपक्षी दलों ने कहा कि यह प्रस्ताव लोकतंत्र को कमजोर और संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करने वाला है। विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है। हालांकि अगर संवैधानिक सिद्धांतों, न्यायिक मिसालों और शासन की अनिवार्यताओं को ध्यान से देखा जाए, तो

विपक्ष की आपत्तियां काफी हद तक निराधार प्रतीत होती हैं। भारत में एक साथ चुनाव कोई नई बात नहीं। 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए गए थे। यह परंपरा इसलिए नहीं खत्म हुई क्योंकि एक साथ चुनाव को असंवैधानिक या लोकतंत्र के लिए हानिकारक माना गया था, यह खत्म हुई क्योंकि मध्यावधि चुनावों की नौबत आ गई थी। विधायिकाओं के कार्यकाल के लिए संविधान खुद ही लचीलेपन की अनुमति देता है। असाधारण परिस्थितियों में समय से पहले चुनाव कराए जा सकते हैं या फिर विस्तार भी हो सकता है। इसलिए चुनावों को एक साथ कराने का विचार संविधान का उल्लंघन नहीं, बल्कि व्यवस्थित बदलाव है। लोकतंत्र, जो हमारे संविधान की नींव है, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों पर टिका है। यह प्रस्ताव जनता के मतदान या अपने प्रतिनिधि चुनने के अधिकार पर कोई असर नहीं डालता। यह चुनावों को एक साथ करके प्रक्रिया को सरल और सस्ता बनाता है, जिससे बार-बार चुनाव कराने का खर्च और झंझट कम होगा। संविधान की एक और अहम विशेषता संघवाद पर भी इससे असर नहीं पड़ता। यह हमेशा केंद्र और राज्यों के बीच मजबूत सहयोग की अनुमति देता है। इस संशोधन से राज्यों की ताकत या स्वतंत्रता नहीं छिन जाएगी। यह प्रस्ताव से दूसरे संवैधानिक सिद्धांत मसलन न्यायपालिका की स्वतंत्रता, कानून के शासन और मौलिक अधिकारों पर कोई असर नहीं पड़ता। पहले की तरह ही असंवैधानिक फैसलों की समीक्षा का अधिकार न्यायपालिका के पास रहेगा। यह संशोधन चुनाव आयोग के काम में भी दखल नहीं देता। चुनावों को एक साथ कराना सिर्फ एक प्रक्रिया में बदलाव है, जो संविध

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