संसद में संविधान के नाम पर बहस हुई, लेकिन केंद्रबिंदु डॉ. भीमराव आंबेडकर और महात्मा गांधी ने ही रहा. कांग्रेस और बीजेपी में आंबेडकर के सम्मान और अपमान पर ही चर्चा रची गई. आंबेडकर की लोकप्रियता का उपयोग दोनों पार्टियों ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए किया.
संविधान के नाम पर संसद में हुई बहस में जितनी भी पार्टियां शामिल हुईं, जनता के संवैधानिक अधिकारों, देश के फेडरल सिस्टम, न्याय व्यवस्था और कानून निर्माण की खामियों पर चर्चा के बजाय अंबेडकर स्तुति गान पर ज्यादा केंद्रित रहीं. विशेषकर कांग्रेस और बीजेपी में संविधान के नाम पर डॉ. भीमराव आंबेडकर के सम्मान और अपमान पर ही बात होती रही. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को किनारे लगाने का आरोप भारतीय जनता पार्टी पर यूं ही लगता रहा है.
जिस तरह विपक्षी पार्टियों ने गांधी की जगह आंबेडकर को तरजीह देनी शुरू की है वो केवल दलित वोटों का प्रेशर ही है. आम आदमी पार्टी ने तो कांग्रेस और बीजेपी से एक कदम आगे बढ़ते हुए गांधी की फोटो तक हटा दी और पार्टी कार्यालयों में आंबेडकर और भगत सिंह ही नजर आते हैं. इक्कीसवीं सदी में डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ही सही मायने में राष्ट्र निर्माता बन चुके हैं. गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार को राज्यसभा में करीब 2 घंटे की स्पीच में डॉ. भीमराव आंबेडकर का लगातार महिमामंडन किया. इस बीच कांग्रेस को लपेटने में वे ऐसी बातें कह गए, जिसका दुरुपयोग करने का मौका कांग्रेस को मिल गया. फिर कांग्रेस ने वही खेल किया जो बीजेपी हर चुनावों के पहले राहुल गांधी और सैम पित्रोदा के बयानों के साथ करती रही है. यानि कि तू डाल-डाल मैं पात-पात. यह आंबेडकर की लोकप्रियता और उनके नाम पर मिलने वाला वोट ही है कि अमित शाह जैसे शख्स को 24 घंटे के अंदर लाइव टीवी पर आकर अपनी सफाई देनी पड़ी. यह जाहिर करता है कि आज की राजनीति में डॉ. भीमराव आंबेडकर कितने महत्वपूर्ण हो चुके हैं. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इन दोनों ही पार्टियों को दलित वोटों की चिंता है या दलितों के कल्याण की भी चिंता है?दलितों की सबसे बड़ी हितैषी बनने वाली कांग्रेस सही मायने में सवर्णों की पार्टी रही है और अब भी देश में जितनी पार्टियां हैं उनमें सवर्णों का झुकाव बीजेपी और कांग्रेस की ओर ही सबसे ज्यादा है. फिर भी ये दोनों ही पार्टियां अपने को सबसे बड़ा दलित हितैषी साबित करने में लगी रहती हैं. कांग्रेस के 60 साल के शासन के इतिहास में अगर दलितों का कल्याण हुआ होता तो आज भी यह तबका समाज के सबसे निचले पायदान पर नहीं होता. चाहे आंबेडकर रहे हों या जगजीवन राम, कांग्रेस में कभी भी उनको वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थ
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