सक्त चौथ एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्यौहार है जो माघ मास की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सक्त माता और भगवान गणेश की पूजा की जाती है और कठिन उपवास का पालन किया जाता है। इस त्यौहार के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा है जो गणेश जी को एक जीवनदान की कहानी बताती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सकट चौथ हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह माघ महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है। इस बार यह 17 जनवरी यानी आज के दिन रखा जा रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि पर लोग सकट माता और भगवान गणेश की पूजा करते हैं। साथ ही कठिन उपवास का पालन करते हैं। वहीं, जो साधक इस कठिन व्रत का पालन कर रहे हैं, उन्हें सकट चौथ व्रत की कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। \ सकट चौथ व्रत की कथा (Sakat
Chauth 2025) सकट चौथ व्रत को लेकर कई पौराणिक कथा प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथा का जिक्र आज हम करेंगे। एक समय की बात है माता पार्वती स्नान करने के लिए गईं, जिस वजह से उन्होंने अपने कक्ष के बाहर गणेश भगवान खड़ा कर दिया था। साथ ही उन्हें यह भी कहा था कि ''मैं जब तक बाहर न आ जाऊं तब तक किसी को अंदर मत आने देना।'' कुछ समय के बाद जब शिव जी देवी से मिलने पहुंचे, तो बप्पा ने अपनी माता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। भगवान शिव के बार-बार समझाने पर भी वे नहीं मानें। इसके बाद भोलेनाथ बहुत क्रोधित हो गए और क्रोध में आकर उन्होंने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती बाहर आईं, तो उन्होंने देखा कि शिव जी ने उनके पुत्र का सिर धड़ से अलग कर दिया है। इससे वे बहुत ही क्रोधित हुईं, सृष्टि के कल्याण और माता पार्वती के क्रोध को शांत करने के लिए शिव जी ने भगवान गणेश को जीवन दान दिया और एक हाथी के बच्चे का सिर गणेश जी के धड़ पर लगा दिया। इससे गणेश जी को दूसरा जीवन मिल गया। साथ ही सभी देवी-देवताओं ने भगवान गणेश जी को आशीर्वाद दिया। तभी से महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए सकट चौथ का व्रत रखने लगीं और आज तक इस व्रत का पालन किया जाता है।
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