सर्वोच्च न्यायालय : अमान्य विवाह में पत्नी को भरण-पोषण की हकदार

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सर्वोच्च न्यायालय : अमान्य विवाह में पत्नी को भरण-पोषण की हकदार
अमान्य विवाहभरण-पोषणमहिला अधिकार
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भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने अमान्य विवाह में पत्नी को भरण-पोषण की हकदार घोषित किया है और बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्दों जैसे 'नाजायज पत्नी' और 'वफादार रखैल' पर आपत्ति जताई है। न्यायालय ने कहा कि इन शब्दों का इस्तेमाल स्त्री-द्वेषपूर्ण है और महिला की गरिमा को कम करता है।

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिसमें अमान्य विवाह में पत्नी को हिंदू विवाह अधिनियम , 1955 के तहत भरण-पोषण की मांग करने का अधिकार दिया है। न्यायालय ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 2004 के निर्णय में 'नाजायज पत्नी' या 'वफादार रखैल' जैसे शब्दों के उपयोग पर आपत्ति जताई और कहा कि इससे महिला की गरिमा प्रभावित होती है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संविधान हर व्यक्ति को सम्मानजनक जीवन का अधिकार देता है और इन शब्दों का इस्तेमाल किसी महिला के मूल अधिकारों का उल्लंघन होगा।न्यायालय ने कहा कि

विवाह अमान्य होने के बाद भी पत्नी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत दूसरे पति से गुजारा भत्ता या अंतरिम भरण-पोषण की मांग करने का हकदार है। यह राहत स्थायी या अंतरिम हो सकता है और यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और पक्षों के आचरण पर निर्भर करता है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि भरण-पोषण देने से रोका नहीं जा सकता है, बशर्ते धारा 24 की शर्तें पूरी हों

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