भरत चौबे/ सीतामढ़ी: जिले के किसान बदलते मौसम और जल संकट को देखते हुए अपनी पारंपरिक खेती छोड़कर अब मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं. जिस मोटे अनाज को सालों पहले किसानों ने छोड़ दिया था, आज वही अनाज उनकी नई पहचान बन गया है. जिले के विभिन्न इलाकों में अब 8 में से 7 प्रकार के मोटे अनाज की खेती हो रही है.
बथनाहा के किसान आलोक कुमार ने बताया कि उन्होंने मोटे अनाज के आठ प्रकारों में से सात की खेती शुरू की है, जिनमें मरुआ, कोदो, चीना, ज्वार, बाजरा, कौनी और सामा शामिल हैं. सिर्फ कुटनी का बीज उन्हें अब तक नहीं मिल पाया है. आलोक कुमार ने कहा कि पहले जिले में मोटा अनाज प्रचूर मात्रा में उपजाया जाता था. उन्होंने यह भी बताया कि मोटे अनाज की खेती स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होने के साथ-साथ कम लागत और कम पानी में भी बेहतर उत्पादन देती है, जो किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बना रहा है.
इस स्थिति को देखते हुए कम पानी की खपत वाली फसलों की खेती करना बेहद जरूरी हो गया है. उन्होंने कहा, मोटे अनाज की खेती में पानी की खपत बहुत कम होती है, साथ ही खाद की भी जरूरत नहीं पड़ती. इसके बावजूद फसल का उत्पादन अच्छा होता है. यही कारण है कि किसान इसे अपना रहे हैं. वर्तमान में अपना खेत फाउंडेशन से जुड़े 180 किसान मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं. यह अनाज कम पानी और कम लागत में अच्छा उत्पादन देता है, जो किसानों के लिए अधिक लाभकारी साबित हो रहा है.
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