जेएनयू छात्र संघ से लेकर सीपीएम के नेतृत्व तक, मिलनसार सीताराम येचुरी ने कम्युनिस्ट होते हुए भी कई मौकों पर एक लचीला रुख अपनाया.
आधी सदी तक कम्युनिस्ट रहने के बावजूद सीताराम येचुरी के बारे में कुछ भी सिद्धांतवादी या हठधर्मी नहीं था. वे हमेशा एक मिलनसार व्यक्तिगत वाले शख़्स थे.
जब मैं सीताराम येचुरी के बारे में सोचती हूँ तो मेरे मन कई ख़्याल आते हैं. वह एक विद्वान, विचारशील, पढ़े-लिखे, लेखक थे जो लगातार विचारों से जूझते रहते थे. उन्हें इस देश की राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले लीडर के तौर पर भी याद किए जाएगा. ख़ास तौर पर बीजेपी का विकल्प गढ़ने के लिए 1989-2014 के बीच बने कई गठबंधनों में उनकी भूमिका थी.इंडिया ब्लॉक की एक बैठक में सीताराम येचुरी और राहुल गांधीदूसरे सियासी दलों से मतभेद के बावजूद अलग-अलग राजनीतिक दलों से दोस्ती करने में माहिर सीताराम येचुरी को कभी-कभी "एक और हरकिशन सिंह सुरजीत" के रूप में जाना जाता था.
लेकिन पार्टी की शीर्ष केंद्रीय समिति ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया, जिसे बाद में बसु ने एक ''ऐतिहासिक गलती'' के रूप में बताया था. पार्टी के एक अनुशासित सिपाही के तौर पर कई बार वह असहमतियों को बावजूद पार्टी के फ़ैसलों के साथ चलते थे.
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