सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता कामेश्वर चौपाल का शनिवार को सुपौल जिले के कमरैल गांव में अंतिम संस्कार किया गया। उनका निधन 6 फरवरी 2025 को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हुआ था। कामेश्वर चौपाल आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्ता थे और भाजपा के भी काफी निकट थे।
24 अप्रैल 1956 को सुपौल के मरौना प्रखंड अंतर्गत कमरैल निवासी स्व माली चौपाल और स्व रामरती देवी के घर पहली संतान के रूप में जन्मे कामेश्वर चौपाल का जीवन युवावस्था से ही राम को समर्पित रहा। जय श्री राम के नारे के साथ ही शनिवार को उन्हें अंतिम विदाई दी गई। उनका जीवन काफी संघर्षमय रहा है। कुछ वर्ष पहले जब अचानक उनके दोनों किडनी फेल हो गए थे तो दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में उनकी बड़ी बेटी लीला देवी ने किडनी दान कर जान बचाई थी। लेकिन अचानक 13 जनवरी को पुनः बीमार पड़ गए। जिसके बाद दोबारा उन्हें सर
गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां इलाज के दौरान 6 फरवरी 2025 को अंतिम सांस ली। उनके निधन के बाद बताया गया कि उनका लीवर भी बुरी तरह डैमेज हो गया था, लेकिन परिजनों को इसकी सही जानकारी अस्पताल प्रबंधन ने नहीं दी। शनिवार की सुबह करीब 10 बजे उनका पार्थिव शरीर कमरैल पहुंचा। जहां तमाम नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। इसके उपरांत घर से सटे बगीचे में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। खास बात यह रही कि उन्हें मुखाग्नि जहां दी गई, उसके ठीक सटे उनकी दिवंगत पत्नी स्व श्रीवती देवी की भी समाधी है। उनके पुत्र विवेक आनंद विवेक ने बताया कि मां श्रीवती देवी का निधन 21 फरवरी 2019 को हुआ था। उस वक्त भी कुंभ का मेला लगा हुआ था। पिता कामेश्वर चौपाल का निधन भी उस वक्त हुआ है, जब यूपी के प्रयागराज में महाकुंभ का मेला लगा हुआ है। पुत्र बताते हैं कि पिता की अंतिम इच्छा थी कि सीतामढ़ी में मां सीता के भव्य मंदिर की स्थापना हो। हालांकि संतोष इस बात का है कि बिहार सरकार ने इस दिशा में पहल शुरू कर दी है। गांव में ही की थी पांचवी तक की पढ़ाई जब पूरे प्रखंड कोसी की त्रासदी से जूझ रहे थे, लोग दाना पानी के लिए मोहताज हो रहे थे, उसी समय कामेश्वर चौपाल के पिता ने अपने दरवाजे पर एक प्राइवेट शिक्षक बेकल दास गोसाईं को रखकर उनकी और गांव के अन्य बच्चों के साथ पांचवीं कक्षा की पढ़ाई की पूरी कराई थी। इसके बाद छठी कक्षा में उन्होंने लालेश्वर नाथ उच्च विद्यालय भलुआही में नामांकन कराया। प्रतिदिन 10 किलोमीटर पैदल पढ़ने जाते थे। सन् 1973 में उन्होंने प्रथम श्रेणी से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। जिसके बाद जेएन कालेज मधुबनी में अपना नामांकन करवाया और एमए की पढ़ाई पूरी कर आरएसएस का दामन थाम कर सामाजिक जीवन में सक्रिय हुए। भाजपा जिला इकाई ने नहीं मनाया दिल्ली जीत का जश्न इधर, कामेश्वर चौपाल के निधन के बाद भाजपा जिला संगठन के कई दिग्गज भी उनके अंतिम संस्कार में पहुंचे। स्व चौपाल को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद भाजपा की जिला इकाई ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में हुई जीत का जश्न मनाने से इंकार कर दिया। भाजपा जिलाध्यक्ष नरेंद्र ऋषिदेव ने बताया कि दिल्ली में पार्टी की जीत के बाद कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह है। लेकिन सुपौल ने कामेश्वर चाैपाल के रूप में आज अपना बेटा खोया है। इसलिए उनकी श्रद्धांजलि के तौर पर सुपौल में शनिवार को किसी प्रकार का कोई जश्न नहीं मनाने का निर्णय लिया गया है। जानिए, कामेश्वर चौपाल के परिवार के बारे में कामेश्वर चौपाल तीन भाइयों में बड़े थे। मंझले भाई देवदत्त चौपाल किसान हैं, गांव में ही खेतीबाड़ी करते हैं। छोटे भाई दानी चौपाल पूर्व पंचायत समिति सदस्य हैं और वर्तमान में भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। कामेश्वर चौपाल को तीन संतान हैं। जिनमें सबसे बड़ी बेटी लीला देवी है, उसने ही उन्हें किडनी डोनेट की थी। उसकी शादी मधुबनी जिले के झंझारपुर प्रखंड के नवानि पंचायत के परमानंदपुर गांव निवासी राजकुमार चौपाल से हुई है। राजकुमार भी किसान हैं। दूसरे नंबर पर पुत्री प्रतिभा देवी है, जिसकी शादी दरभंगा जिले के भंसारा गांव निवासी दिलीप चौपाल के साथ हुई है। दिलीप फिलहाल केनरा बैंक में वरीय प्रबंधक हैं। तीसरे नंबर पर पुत्र विवेक आनंद विवेक हैं, जो हाजीपुर में जमीन सर्वे विभाग में अधिकारी है। कामेश्वर चौपाल के पिता स्व माली चौपाल किसान थे और मां रामरति देवी गृहिणी। पत्नी स्व श्रीवती देवी भी गृहिणी थीं।
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