83 वर्षीय पूर्व केंद्रीय कृषि एवं जल संसाधन राज्यमंत्री सोमपाल शास्त्री कृषक वर्ग की वर्तमान स्थिति पर चिंतित हैं। उन्होंने पिछली सरकार में किए गए क्रांतिकारी कदमों का जिक्र किया और आज भारत में कृषि क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों को रेखांकित किया। विशेष रूप से, उन्होंने सिंचाई और जल संसाधन विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा कि कृषि बजट में जल को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के प्रति तैयार रहने और कृषि के विकास के लिए व्यावहारिक समाधानों की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सोमपाल शास्त्री साक्षात्कार: किसान क्रेडिट कार्ड , चीनी उद्योग को लाइसेंस प्रणाली से मुक्ति, जैविक खेती पर टास्क फोर्स का गठन और राष्ट्रीय जैविक कृषि केंद्र की स्थापना जैसे क्रांतिकारी कदम उठाने के लिए याद किए जाने वाले 83 वर्षीय पूर्व केंद्रीय कृषि एवं जल संसाधन राज्यमंत्री सोमपाल शास्त्री कृषक वर्ग की वर्तमान स्थिति पर चिंतित नजर आते हैं। किसान-जाट परिवार में पैदाइश की वजह से इस वर्ग को लेकर ज्यादा संवेदनशील हैं और खेती-किसानी की समस्याओं के समाधान भी सुझाते हैं। उनका
मानना है कि सरकार को कृषि क्षेत्र से सब्सिडी को तुरंत खत्म करनी चाहिए। वह कृषि बजट को केंद्र व राज्य के दायरे में नहीं बांटने और सिंचाई को बजट में जोड़ने की सलाह भी देते हैं। 13 महीने की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कृषि जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालने के अतिरिक्त वे योजना आयोग के सदस्य भी रहे हैं, इसलिए अपनी दलीलों के लिए उनके पास डाटा भी उपलब्ध है। कमीशन ऑन एग्रीकल्चर कास्ट एंड प्राइसेज की रिपोर्ट का हवाला देते हुए वह कहते हैं 1913 से अब तक किसान की वास्तविक आय इतनी नहीं बढ़ी, जिस दर से महंगाई बढ़ी। केंद्रीय बजट के आलोक में उन्होंने दैनिक जागरण के डिप्टी चीफ रिपोर्टर आशु सिंह से कृषि और कृषकों के कल्याण के लिए जरूरी प्रविधानों पर बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश... 01. आप अटल बिहारी सरकार में कृषि राज्यमंत्री रहे? कृषि के क्षेत्र में उस समय और आज की स्थिति में कितना और क्या बदलाव आया है? कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं आया है। अटल जी की सरकार के समय अवश्य वह काम हुए जिनकी आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी और कृषि अर्थव्यवस्था से संबंधित रिपोर्ट अथवा योजना आयोग के दस्तावेज में जिनके प्रति सरकार को चेताया जा रहा था। तब एक दर्जन से ज्यादा ऐसे निर्णय लिए गए। किसान क्रेडिट कार्ड जारी हुआ जो कृषि ऋण के मामले में क्रांतिकारी कदम था। तब परंपरागत अर्थशास्त्रियों को यह आशंका थी कि किसानों को जो कर्ज देंगे वो मारा जाएगा। मैंने स्टैंड लिया कि प्रत्येक वर्ष किसान को अपना खाता बराबर करना पड़ेगा। इसका लिखित अनुबंध होगा। ऐसा होने पर कोई कर्ज से नहीं मरेगा। यह बात आज सत्य साबित हो रही। ऋण देने की कोई विधा इतनी सफल नहीं जितना किसान क्रेडिट कार्ड है। वर्तमान में 10 करोड़ किसानों के पास केसीसी है। इसमें 98.6 प्रतिशत ऋण वापसी है। हाउस लोन को छोड़कर कोई भी ऋण की वापसी इतनी नियमित नहीं जितनी केसीसी में है। दूसरा, 17 देशों की कृषि बीमा योजना का अध्ययन हुआ। यह संसद में प्रस्तुत करने वाले थे कि सरकार गिर गई। तीसरा, चीनी उद्योग को लाइसेंस प्रणाली से मुक्त करने का निर्णय। चौथा, दुग्ध प्रसंस्करण उद्योग को एनडीडीबी, यानी राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड के नियंत्रण से बाहर करना। इनके अतिरिक्त राज्य सहकारिता संस्थाओं से संबंधित अधिनियम और मंडी कमेटी एक्ट को बदला गया। जैविक खेती के लिए टास्क फोर्स गठन किया और राष्ट्रीय जैविक कृषि केंद्र गाजियाबाद में स्थापित कराया। इसके अलावा भी बहुत कुछ हुआ। 02. भारत में आज कृषि क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या है? इससे निपटने के लिए बजट में क्या प्रविधान होना चाहिए? कृषि और सिंचाई को मिलाकर बजट बनना चाहिए। दोनों मामलों में कठिनाई सदा से यह रही कि केंद्र सरकार कहती है कि कृषि राज्यों का विषय है। यही बात जल के विषय में है कि संविधान के अनुसार यह राज्य का विषय है। मैं सिंचाई मंत्रालय की समितियों में और संसद में भी यह बात उठाता रहा कि उत्पादन के दो क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण हैं, भूमि और जल। इसका सटीक उदाहरण हरित क्रांति है। हरित क्रांति उन क्षेत्रों में हुई जहां सिंचाई का उचित प्रबंध है। सिंचित क्षेत्र में उपज चार टन प्रति हेक्टेयर से ऊपर है। यह आजादी के समय 1.2 टन थी। असिंचित क्षेत्र में अब भी यह दर वहीं की वहीं है। सिंचाई परियोजनाएं क्षमता सृजित नहीं कर पाईं। कृषि का उत्पादन बढ़ाने के लिए सबसे बड़ा कारक जल है। केंद्र और राज्यों को जल संसाधनों के विकास पर जितना ध्यान देना चाहिए था वह नहीं दिया। पानी उपलब्ध नहीं होगा, खेती नहीं हो सकती। 03. जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हम कितने तैयार हैं? खास तौर पर जब हमारे देश की आबादी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है? जलवायु परिवर्तन तो होगा ही। इसके प्रत्याशित प्रभाव से कैसे बचा जाए, यह प्रबंध करना होगा। वर्षा जल को संचित कर सूक्ष्म सिंचाई पद्धति का प्रयोग कर किसानों को सस्ती दर पर चीजें दी जाएं। इसका बजट में प्रविधान नहीं होता, केवल सब्सिडी दी जाती है। जल को प्रदूषित करने वाले और नीति बनाने वाले चुनौतियां नहीं समाधान दें, सुझाव दें। जलवायु परिवर्तन का सामना किस तरह किया जाए इसका आज तक किसी ने कोई व्यावहारिक सुझाव नहीं दिया। 04. आपको अभी तक का सबसे अच्छा कृषि बजट कौन-सा लगता है? किसी भी बजट में कोई नवीनता नहीं दिखाई देती। उर्वरकों पर सब्सिडी और किसान सम्मान निधि के अतिरिक्त बजट में कभी कृषि को कोई अतिरिक्त महत्व नहीं दिया गया। हर बार वही एक ढर्रे वाला बजट आता है। बजट में कृषि के लिए कभी कोई विशेष बात नहीं रही। बजट में जल संसाधन के विकास को महत्व दिया जाना चाहिए, जो कि राज्यों को आवंटित किया जाए परियोजना के आधार पर। सिंचाई की चारों योजनाओं को मिलाकर समग्र परियोजना बने और उसकी समयावधि तय हो। इसमें केंद्र को राज्यों की सहायता करना चाहिए। किसी भी बजट में सबसे कम आवंटन सिंचाई को दिया जाता है। बिना सुनिश्चित सिंचाई के कृषि का उत्पादन नहीं बढ़ सकता। 05
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