स्थायी कमीशन : 25 साल की सेवा के बाद भी महिला अधिकारियों के पास विकल्प नहीं

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स्थायी कमीशन : 25 साल की सेवा के बाद भी महिला अधिकारियों के पास विकल्प नहीं
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समानता के अधिकार में सरकार के कामों में दो वर्गों के लोगों के प्रति अतार्किक और गैर-वाजिब भेदभाव नहीं झलकना चाहिए। SupremeCourt PermanentCommission ArmedForces Female_Warriors

देते हुए मील का पत्थर साबित होने वाले निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि महिलाओं को कमजोर मानना भारतीय संविधान के मूल्यों के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें कमान में नियुक्ति नहीं देना और केवल स्टाफ अपॉइंटमेंट तक सीमित रखना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। यह अनुच्छेद सभी नागरिकों को समानता का अधिकार है।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने सेना में सेवारत महिला अधिकारियों के साथ नाइंसाफी का मुद्दा उठाते हुए कहा, पुरुष एसएससीओ को पांच व 10 साल सेवाकाल के बार स्थायी कमीशन का विकल्प दिया जाता है, महिला अधिकारियों को नहीं, भले ही वे 25 साल सेवा कर लें।’ इसी प्रकार के कई तर्क महिला सैन्य अधिकारियों व याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में रखे गए।

सैन्य सेवा एक जीवन शैली है जिसमें त्याग, समर्पण और कॉल ऑफ ड्यूटी से आगे बढ़कर योगदान की जरूरत होती है। महिला अधिकारियों के होने से यूनिट के माहौल पर प्रतिकूल असर होगा, इस तर्क को महिलाओं को अलग रखने का आधार बनाया जा रहा है। कम संसाधनों में महिला अधिकारियों को परेशानी का तर्क यह बताने के लिए दिया गया कि उन्हें हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में नियुक्त नहीं किया जा सकता, लेकिन याचिका में यह भी सामने आया कि 30 प्रतिशत महिला अधिकारी ऐसे ही क्षेत्रों में नियुक्त हैं।सेना की सिग्नल कोर की ले.

सुप्रीम कोर्ट में महिला अफसरों का प्रतिनिधित्व कर रही वकीलों मीनाक्षी लेखी और ऐश्वर्या भाटी ने कहा, कई महिलाओं ने विपरीत परिस्थितियों में असाधारण साहस का प्रदर्शन किया है। दूसरी तरफ महिलाओं को कमान में तैनाती के खिलाफ दलील दी गई कि सेना में कठिन हालात का सामना करना पड़ता है। जिसे महिलाएं झेल पाने में कई बार समर्थ नहीं होतीं।याचिकाकर्ताओं ने फौज में कार्यरत महिलाओं का दर्द जाहिर किया। दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद महिला सैन्य अधिकारियों को स्थायी कमीशन नहीं दिया गया क्योंकि सेना में 96...

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