हनुमान जी के जीवन से प्रेरित होकर आचार्य श्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने परमार्थ निकेतन शिविर में दिव्य हनुमंत कथा का आयोजन किया। उन्होंने बताया कि हनुमंत कथा हमें अपने जीवन को नई दिशा देने का अवसर प्रदान करती है। कथा में महाबली हनुमान जी की भक्ति, शक्ति और समर्पण को प्रमुखता दी गई। कथा का समापन आचार्य नारायण दास द्वारा श्रीमद्भागवत कथा के साथ हुआ, जहाँ उन्होंने भौमासुर वध, सुदामा चरित्र, यदुकुल शाप और नौ विरक्त महापुरुषों द्वारा विदेहराज राजा निमि के प्रसंग की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि जीवन और जगत को इंद्रियों के ज्ञान से नहीं, अपितु आत्मा के द्वारा ही जाना और समझा जा सकता है।
हनुमान जी के जीवन से पराक्रम, भक्ति और श्रद्धा की दिव्यता की अनुभूति होती है। उनका जीवन केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि यह एक संजीवनी है, जो हमें हर संकट से उबरने का संदेश देता है। यह बातें परमार्थ निकेतन शिविर , परमार्थ त्रिवेणी पुष्प प्रयागराज में आयोजित दिव्य हनुमंत कथा में आचार्य श्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री (बागेश्वर धाम सरकार) ने कहीं। उन्होंने बताया कि हनुमंत कथा मनुष्य के लिए दिव्य उपहार है जो जीवन के संघर्षों, चुनौतियों और परेशानियों से निपटने के लिए अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करती है। हनुमान
जी की कथा केवल एक ऐतिहासिक या पौराणिक कथा नहीं है बल्कि यह एक आध्यात्मिक यथार्थ है, जो हमें अपने जीवन को नई दिशा देने का अवसर प्रदान करती है। उनकी भक्ति, शक्ति और समर्पण हमें सिखाता हैं कि किसी भी संकट से जूझते हुए अगर सच्चे हृदय से भक्ति करें, तो हम हर मुश्किलों से पार पा सकते हैं। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती मुनि ने कहा कि महाबली हनुमान जी ने सब कुछ प्रभु श्रीराम के लिए किया। साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा कि आज हम सबको यह दिव्य अवसर प्राप्त हुआ है। हमें भक्ति की शक्ति में डुबकी लगाने का अवसर प्राप्त हो रहा है। अमेरिका ने मुझे जीवन दिया परंतु भारत ने मुझे जान दी। सांसद अरुण गोविल ने कहा कि महाकुंभ पवित्रता का महोत्सव है। यह एकता, दिव्यता और समरसता का महोत्सव है। मित्रता का मूल्यांकन धनादि से नहीं, प्रगाढ़ प्रेम से होता है: आचार्य नारायण दास महाकुंभ नगर के मुक्तिमार्ग स्थित सेक्टर-16 में श्रीमद्भागवत कथा हो रही है। छठें दिन ऋषिकेश के कथावाचक आचार्य नारायण दास ने भौमासुर वध, सुदामा चरित्र, यदुकुल शाप और नौ विरक्त महापुरुषों द्वारा विदेहराज राजा निमि के प्रसंग की कथा कही। उन्होंने कहा, जीवन और जगत को इंद्रियों के ज्ञान से नहीं, अपितु आत्मा के द्वारा ही जाना और समझा जा सकता है। यथार्थ ज्ञान तो आत्मा के प्रकाश से ही होता है। सच्चा आत्मबोध तभी होगा, जब जीवन में महापुरुषों का सत्संग प्राप्त होगा, तब उनकी कृपा से हृदय में सत्य की प्रतिष्ठा होगी और मन में निर्मलता वास करेगी। सुदामा चरित्र पर प्रकाश डालते हुए आचार्य ने कहा, मित्रता का मूल्यांकन धनादि से नहीं अपितु प्रगाढ़ प्रेम से होता है। आज अगर धन-ऐश्वर्य से संपन्न लोग आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की मदद करें तो समाज सुखमय हो जाएगा। आचार्य ने यदुवंश को शापित होने के कारण को बताते हुए कहा, हमें अहंकार के वशीभूत होकर कभी भी छल-प्रपंच, किसी को ठगना या अपमान और परिहास नहीं करना चाहिए और न ही किसी की व्यर्थ में परीक्षा लेनी चाहिए। कथा में श्रीमहंत महामंडलेश्वर वृंदावन दास, राकेश दास, श्रीरामदास, शंकरदास, माधवदास, आचार्य शिववरन आदि मौजूद रहे
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