दक्षिण अफ्रीका की बफेल्सफोंटेन गोल्ड माइन में महीनों से फंसे सैकड़ों अवैध खनिकों की कहानी बेहद दुखद है. भोजन की कमी के कारण उन्होंने अपने साथियों के शरीर के अंग खाए. यह घटना दुनिया भर में हड़कंप मचा चुकी है.
दक्षिण अफ्रीका की बफेल्सफोंटेन गोल्ड माइन में महीनों से फंसे सैकड़ों अवैध खनिकों की जो कहानी दुनिया के सामने आई है, उसके बाद पूरी दुनिया में तहलका मच गया है. लोग जिंदा रहने के लिए अपने साथियों के हाथ-पैर पसलियां खा गए. बफेल्सफोन्टेन गोल्ड माइन नाम की खदान में ये अवैध मजदूर बीते साल पुलिस के साथ गतिरोध के बाद बंद हो गए थे. जमीन से एक मील नीचे फंसे इन खनिकों को हाल ही में निकाला गया है. बाहर आने के बाद इन्होंने जो बताया पूरी दुनिया हक्का-बक्का है.
द टेलीग्राफ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिंदा बचे लोगों को मजबूरन इंसानों को खाना पड़ा क्योंकि अधिकारियों ने उनके भोजन की आपूर्ति बंद कर दी है. दो बचे हुए लोग जो अब अवैध खनन और सोना रखने के आरोपों का सामना कर रहे हैं और जमानत पर बाहर आए हैं उन्होंने भयावह परिस्थितियों के बारे में बताया.जिंदा बचे मजदूरों का कहना था'उन्होंने जीविका के लिए पैर, हाथ और पसलियों के हिस्से काट लिए. उन्होंने तय किया कि जीवित रहने के लिए यही उनका एकमात्र विकल्प बचा है.' अधिकारियों ने अवैध संचालन की पहचान करने के बाद अगस्त में खदान के प्रवेश द्वार को घेर लिया था. जिसके बाद लगभग 2,000 खनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन सैकड़ों लोग वहीं रह गए. फिर पुलिस ने भोजन और पानी की आपूर्ति प्रतिबंधित कर दी, कथित तौर पर नवंबर में उन्हें पूरी तरह से काट दिया ताकि शेष खनिकों को जमीन के अंदर से बाहर निकलने पर मजबूर किया जा सके.जिसके बाद पिछले सप्ताह में 324 खनिक बाहर निकले, जिनमें से 78 की मौत हो गई. एक बचावकर्मी ने सड़ते हुए शवों और बदबू के बारे में बीबीसी को बताया, उन्होंने कहा कि कुछ खनिकों ने भोजन की कमी के कारण नरभक्षण और तिलचट्टे खाने की बात स्वीकार की है. बचावकर्मी ने कहा,'उन शवों से वाकई बहुत बदबू आ रही थी... उन्होंने मुझे बताया कि उनमें से कुछ को खदान के अंदर दूसरे लोगों को खाना पड़ा क्योंकि उन्हें भोजन नहीं मिल पा रहा था. और वे तिलचट्टे भी खा रहे थे.' बफेल्सफोंटेन गोल्ड माइन में खनिकों को रोकने के लिए दक्षिण अफ्रीकी अधिकारियों की कड़ी आलोचना की गई है. एक प्रमुख कैबिनेट मंत्री द्वारा वर्णित'उन्हें बाहर निकालने' की इस रणनीति की दक्षिण अफ्रीका के सबसे बड़े ट्रेड यूनियनों में से एक ने निंदा की थी. जिसके बाद अब पूरी दुनिया में इस मामले पर सवाल उठ रह हैं
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