हिंदी हैं हम: आज का शब्द- वल्लरी

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हिंदी हैं हम: आज का शब्द- वल्लरी
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माखनलाल चतुर्वेदी की कविता 'क़ैदी और कोकिला' के माध्यम से 'वल्लरी' शब्द का अर्थ बेल, लता बताया गया है। कविता एक कैद की मनोदशा को दर्शाती है और जेल की दीवारों के बीच उमड़ती आशा और निराशा को चित्रित करती है। कोकिल का गीत कैदी की आत्मा का प्रतिबिंब है, जो जीवन की कठिनाइयों और अत्याचारों के बावजूद आशा और उम्मीद का संकेत देता है।

' हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- वल्लरी , जिसका अर्थ है- बेल, लता। प्रस्तुत है माखनलाल चतुर्वेदी की कविता - क़ैदी और कोकिल ा क्या गाती हो? क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल , बोलो तो! क्या लाती हो? संदेशा किसका है? कोकिल , बोलो तो! ऊँची काली दीवारों के घेरे में, डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में, जीने को देते नहीं पेट-भर खाना, मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना! जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है, शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है? हिमकर निराश कर चला रात भी काली, इस समय कालिमामयी जगी...

हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश-राज का गहना! कोल्हू का चर्रक चूँ?—जीवन की तान, गिट्टी पर अँगुलियों ने लिक्खे गान! हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, ख़ाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआँ। दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली, इसलिए रात में ग़ज़ब ढा रही आली? इस शांत समय में, अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो? कोकिल, बोलो तो! चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज इस भाँति बो रही क्यों हो? कोकिल, बोलो तो! काली तू, रजनी भी काली, शासन की करनी भी काली, काली लहर कल्पना काली, मेरी काल-कोठरी काली, टोपी काली, कमली काली, मेरी...

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