सरकार ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' के लिए बनाई कमेटी के प्रस्तावों को स्वीकार तो कर लिया है, लेकिन देश में एक साथ चुनाव करवाने में कई चुनौतियां पेश आएंगी.
वन नेशन वन इलेक्शन से केंद्र और राज्य के बीच भी खींचतान की आशंका जताई जा रही हैकेंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को 'एक देश, एक चुनाव' पर बनाई उच्च स्तरीय कमेटी की सिफ़ारिशों को मंज़ूर कर लिया है. यह कमेटी पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनाई गई थी.कमेटी के प्रस्तावों के मुताबिक़ भारत में 'वन नेशन वन इलेक्शन' को लागू करने के लिए दो बड़े संविधान संशोधन की ज़रूरत होगी. इसके तहत पहले संविधान के अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन करना होगा.
जबकि इस साल इन दोनों राज्यों के चुनाव भी अलग-अलग हो रहे हैं. इसके अलावा भी कई चुनावों का ज़िक्र किया जाता है जो 'वन नेशन वन इलेक्शन' के सिद्धांत से मेल नहीं खाता है. पीडीटी आचारी कहते हैं, "राज्य विधानसभा का चुनाव संविधान की सातवीं अनुसूची में 'स्टेट लिस्ट' में आता है. राज्य विधानसभा को समय से पहले भंग करने का अधिकार राज्य सरकार के पास होता है. लेकिन 'वन नेशन वन इलेक्शन' के लिए राज्य विधानसभाओं से यह अधिकार छीन लिया जाएगा, जो संविधान के मूलभूत ढांचे के ख़िलाफ़ है. इसलिए यह कभी नहीं हो सकता है."
प्रदीप सिंह ने बीबीसी को बताया था, "चुनावों में ब्लैक मनी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है और अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो इसमें काफ़ी कमी आएगी. दूसरे चुनाव ख़र्च का बोझ कम होगा, समय कम ज़ाया होगा और पार्टियों और उम्मीदवारों पर ख़र्च का दबाव भी कम होगा." पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई क़ुरैशी के मुताबिक़ इस वन नेशन वन इलेक्शन के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी को 47 राजनीतिक दलों ने अपनी प्रतिक्रिया भेजी थी, जिनमें 15 दलों ने इसे लोकतंत्र और संविधान के संघीय ढांचे के ख़िलाफ़ बताया था.
"यानी यह जीएसटी की तरह होगा, 'जिसे वन नेशन वन टैक्स' कहा तो जाता है, लेकिन फिर भी हम टोल टैक्स, इनकम टैक्स जैसे कई तरह के टैक्स भरते ही हैं."भारत में आज़ादी और संविधान के अस्तित्व में आने के बाद पहली बार साल 1951-52 में आम चुनाव हुए थे. पहली बार चुनाव होने से उसक़रीब 17 करोड़ मतदाताओंभारत में 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और कई राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे.
ओपी रावत के मुताबिक़ जिन देशों के चुनावी ख़र्च के आंकड़े उपलब्ध हैं, उनमें केन्या में यह ख़र्च 25 डॉलर प्रति वोटर होता है, जो दुनिया में सबसे महंगे आम चुनावों में से शामिल है.
इंडिया ताज़ा खबर, इंडिया मुख्य बातें
Similar News:आप इससे मिलती-जुलती खबरें भी पढ़ सकते हैं जिन्हें हमने अन्य समाचार स्रोतों से एकत्र किया है।
वन नेशन, वन इलेक्शन: संविधान में करने होंगे 2 संशोधन, मोदी सरकार यह कर पाएगी?वन नेशन वन इलेक्शन... क्या यह हकीकत बन पाएगा। मोदी 3.0 के 100 दिन पूरे होते ही केंद्र सरकार इस ओर तेजी से आगे बढ़ी है। अब ऐसे में सवाल है कि क्या यह इतनी आसानी से हो पाएगा वह भी तब जब सरकार के पास संसद में इसके लिए जरूरी बहुमत नहीं है।
और पढो »
‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ क्या है, कैसे लागू होगा?'वन नेशन-वन इलेक्शन' के प्रस्ताव को मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है और पार्लियामेंट में इसे विंटर सेशन में पेश किया जाएगा. जानिए ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ क्या है.
और पढो »
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ क्या है जिससे जुड़ी रिपोर्ट पर मोदी सरकार ने लगाई मुहरकेंद्रीय कैबिनेट ने 'एक देश, एक चुनाव' पर बनाई उच्च स्तरीय कमेटी की सिफ़ारिशों को मंज़ूर कर लिया है. इसकी जानकारी सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी है.
और पढो »
वन नेशन वन इलेक्शन का मायावती ने किया सपोर्ट, कांग्रेस ने कहा इम्प्रैक्टिकल, जानें किस पार्टी की क्या है राय?BJP और NDA के दलों समेत 32 पार्टियों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया है. जबकि कांग्रेस समेत 15 दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध किया है. वहीं, 15 दलों ने इस पर कोई राय नहीं दी है. मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन पर बिल पेश कर सकती है.
और पढो »
वन नेशन वन इलेक्शन से इकोनॉमी को फायदा या नुकसान, क्या कह रहे एक्सपर्ट?अलग-अलग चुनाव कराने का विकास दर पर नकारात्मक असर पड़ता है। विशेषज्ञों ने इस बिंदु को समझाने के लिए तमिलनाडु का उदाहरण भी किया है। इसमें बताया है कि वहां 1996 में साथ-साथ चुनाव हुए तो विकास दर में 4.
और पढो »
वन नेशन वन इलेक्शन पर रामनाथ कोविंद रिपोर्ट को मंजूरी, जानें अब क्या होगाOne Nation One Election: एक देश एक चुनाव को आज मोदी सरकार की कैबिनेट ने हरी झंडी दे दी है। रामनाथ कोविंद की रिपोर्ट को आज कैबिनेट ने मंजूरी दे दी जिसके बाद इसे अब आगे के लिए बढ़ाया जाएगा। हालांकि आगे अभी सरकार के लिए इसे पूरी तरह से लागू करना चुनौती...
और पढो »