संभल में 150 साल पुरानी बावड़ी की खुदाई में अज्ञात रहस्य उजागर हो रहे हैं।
संभल में 150 साल पुरानी बावड़ी मिली है। 3 दिन से इसकी खुदाई चल रही है। अब तक 12 मीटर लंबी खुदाई हो चुकी है। जिसमें 4 कमरे जैसे स्ट्रक्चर मिले हैं, जो आमने-सामने बने हैं। कमरों में से आगे बढ़ने पर आप उसी जगह पर आ जाते हैं, जहां से चले थे।तीन दिन की खुदाई के बाद दैनिक भास्कर रिपोर्टर बावड़ी के अंदर पहुंचे। उन्होंने दिखाया कि बावड़ी अंदर से कैसी दिखती है। अंदर क्या-क्या है, उसके बारे में बताया। संभल से 35 किलोमीटर दूर चंदौसी है। जहां के लक्ष्मण गंज में बावड़ी की खुदाई चल रही है। भास्कर रिपोर्टर
बावड़ी के मेन द्वार पर पहुंचे। यहां आसपास के लोगों की भीड़ लगी मिली। बच्चे बावड़ी के अंदर मौज-मस्ती करते दिखे। मेन गेट से 6 सीढ़ी नीचे उतर कर बावड़ी शुरू होती है। रिपोर्टर ने बताया- सामने एक बड़ा गेट और उसके आगे छोटा गेट मिला। इस बीच में दोनों साइड 3 छोटे-छोटे दरवाजे दिखे। इन सभी छोटे दरवाजों की हाइट मुश्किल से 3-साढ़े तीन फीट रही होगी। सामने बड़े गेट से आगे बढ़कर हम छोटे गेट से अंदर गए। हाइट इतनी कम थी कि अंदर बैठ- बैठकर आगे बढ़ना पड़ा।कुछ ही कदम आगे बढ़े कि दाएं साइड एक दूसरा दरवाजा दिखा। वहां से 4-5 कदम ही आगे बढ़े होंगे कि फिर बाएं साइड दरवाजा दिखा। वहां कुछ ईंट-पत्थर पड़े थे। सुरंग के रास्ते से अलग एक दरवाजा दिखा। उससे अंदर गए तो वहां एक गैलरी मिली, जहां हम खड़े हो सकते थे। उसकी हाइट 6-7 फीट रही होगी। वहां आमने-सामने 4 कमरे बने मिले। अंदर घना अंधेरा था। कमरे का पूरा दृश्य दिख नहीं पाया। इस बीच दरवाजों के बीच-बीच में कई तरह की आकृतियां बनी थीं। हम जिस दरवाजे से कमरों तक गए थे, वहां से वापस उसी रास्ते पर लौटे। वहां से आगे बढ़े तो 10 कदम की दूरी पर दूसरा छोटा दरवाजा था। वहां से बाएं मुड़कर आगे बढ़े और एक और बाएं दरवाजे से मुड़कर हम बाहर निकल आए। अब हम वहीं खड़े थे, जहां से अंदर घुसे थे। ये पूरा नजारा किसी भूल-भुलैया से कम नहीं था। मैं समझ ही नहीं पाया कि कब बाहर निकल आया। सुरंग के बीच में जगह-जगह छोटे मंदिर नुमा आकार बने हुए मिले।डीएम को एक पत्र मिला, तब हुई कार्रवा
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