Anant Chaturdashi Ki Katha: अनंत चतुर्दशी के व्रत का शास्त्रों में बहुत ही खास महत्व बताया गया है। अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा होती है और हाथ में 14 गांठों वाला धागा अनंत बांधा जाता है। ऐसा करने से मां लक्ष्मी की प्रसन्न होती है। अनंत चतुर्दशी की पूजा में कथा का पाठ करने का बहुत ही महत्व माना गया है। आप भी जानें यह...
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा: एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया और यज्ञ मंडप का निर्माण बहुत ही सुंदर व और अद्भुत रूप से किया गया। उस मंडप में जल की जगह स्थल तो स्थल की जगह जल की भ्रांति होती थी। इससे दुर्योधन एक स्थल को देखकर जल कुण्ड में जा गिरे। द्रौपदी ने यह देखकर उनका उपहास किया और कहा कि अंधे की संतान भी अंधी होती है। इस कटुवचन से दुर्योधन बहुत आहत हुए और इस अपमान का बदला लेने के लिए उसने युधिष्ठिर को द्युत अर्थात जुआ खेलने के लिए बुलाया और छल से जीतकर पांडवों को 12 वर्ष वनवास दे...
आराम करने लगे। सुशीला के पूछने पर उन्होंने अनंत व्रत का महत्व बता दिया। सुशीला ने वहीं व्रत का अनुष्ठान कर 14 गांठों वाला डोरा अपने हाथ में बांध लिया। फिर वह पति के पास आ गई।कौण्डिनय ऋषि ने सुशीला के हाथ में बांधे डोरे के बारे में पूछा तो सुशीला ने सारी बात बता दी। कौण्डिनय ऋषि सुशीला की बात से अप्रसन्न हो गए। उसके हाथ में बंधे डोरे को भी आग में डाल दिया। इससे अनंत भगवान का अपमान हुआ जिसके परिणामस्वरूप कौण्डिनय ऋषि की सारी संपत्ति नष्ट हो गई। सुशीला ने इसका कारण डोर का आग में जलाना...
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