हिमाचल प्रदेश में हर नेता वोटरों के दिलों में उतरने की कोशिश कर रहा है, ताकि जीत की मंजिल तक पहुंचा जा सके। इसमें स्थानीय बोलियों का सहारा लिया जा रहा है।
चंबा के डलहौजी में आनंद शर्मा चंबियाली में बोल रहे हैं, ‘अपना सांसद हुआं तो पूछी भी सकदे, भाजपा तां मोदिए दे ना पर लड़ादी चुनाव, चुनावे बाद मोदी तां लबणा ही नी।’ कंगना मंडियाली में वोट मांगते हुए कह रही हैं, ‘मैं तुसां री मठी, मिंजो यक बार मौका देवा, मैं मंडिया यी रैहणा, कने तुसांरी सेवा करनी’। शिमला में नामांकन के बाद विनोद सुल्तानपुरी बोले, ‘आऊं तारा छोटू-तारा बेटा, आऊं तारी खातर काम करने, सारे वादे पूरे करने आया।’ हिमाचल में मतदाताओं को रिझाने के लिए लोकसभा चुनावों के दौरान हिमाचली बोलियों...
चुनावों में ही बोलियां याद आती हैं, चुनाव के बाद सब भूल जाते हैं। हिमाचल के एक नेता इसके अपवाद हैं। हमीरपुर के सेरा के रहने वाले स्वर्गीय नारायण चंद पराशर को हिमाचली बोलियों से खासा लगाव था। वह तीन बार लोकसभा सांसद, तीन बार विधायक चुने गए। वीरभद्र सरकार में शिक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने हिमाचली बोलियों के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास किए थे। लोक जाणदे, कुण लोग वोटां दे समय वोट लैणे वास्ते लोकल बोलियां बोलदे हन : परमार हिमाचल प्रदेश च मतियां लोकल बोलियां हन, जेहड़ी जे आहां प्रयोग करदे, जद लोकां...
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