रोहतास. भारत में धान की खेती न केवल कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, बल्कि यह करोड़ों किसानों की आजीविका का आधार भी है. धान की फसल, जो देश की प्रमुख फसलों में से एक है, हर साल कई प्रकार के रोगों और कीटों का सामना करती है. इन समस्याओं का सीधा असर किसानों की मेहनत और फसल की उपज पर पड़ता है.
कृषि विशेषज्ञ डॉ. रतन कुमार लोकल 18 से बात करते हुए बताते हैं कि धान के पौधों पर मुख्य रूप से शीथ ब्लाइट, जिसे आमतौर पर गलका कहा जाता है, उसका प्रकोप देखा जाता है. यह रोग पौधों की पत्तियों, तनों और दानों को प्रभावित करता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में कमी आती है. शीथ ब्लाइट के अलावा, धान के पौधों पर अन्य रोग भी देखे जाते हैं, यदि इन रोगों की पहचान और उपचार समय पर नहीं किया जाता, तो पैदावार में भारी गिरावट हो सकती है, जो किसानों के लिए आर्थिक संकट का कारण बन सकता है.
स्टेम बोरर जैसे कीट पौधों को कमजोर बना देते हैं, जिससे पौधे जल्दी सूखने लगते हैं. इन कीटों का प्रबंधन समय पर करना जरूरी है ताकि फसल को बड़े पैमाने पर नुकसान से बचाया जा सके. फसल को रोगों और कीटों से बचाने के लिए जैविक और रासायनिक उपायों का सही संतुलन बनाए रखना आवश्यक है. डॉ. रतन के अनुसार, इसमें रोग प्रतिरोधी बीजों का चयन, नियमित कीटनाशक छिड़काव और फसल की लगातार निगरानी शामिल है. ये उपाय न केवल फसल की सुरक्षा में मददगार होते हैं, बल्कि उपज को बढ़ाने में भी सहायक होते हैं.
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