आज बातें इटावा की। यहां के सियासी मिजाज और अंदाज की।
इटावा का नाम आते ही जेहन में कई सवाल उभर आते हैं। वह सीट जिसने बसपा के संस्थापक कांशीराम को जिताया। मुलायम परिवार का गढ़ बनी। वह सीट जहां दलित आबादी 26.
85 फीसदी है। वह सीट जो 2009 से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। पर, दलितों को केंद्र में रखकर सियासत करने वाली बसपा सीट सुरक्षित होने के बाद यहां जीत दर्ज नहीं कर सकी। मुलायम के परिवार से भले ही कोई यहां के मैदान में नहीं रहा हो, पर परिवार का असर इस सीट पर देखने को मिलता रहा है। बहरहाल, 2009 में सपा के प्रेमदास के प्रेम का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोला। इसके बाद तो यहां भगवा रंग चटख हो गया। 1957 में अस्तित्व में आने के बाद से अब तक इस सीट से सिर्फ सपा के रघुराज सिंह शाक्य ही लगातार दो बार जीते।...
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