कर्नाटक के कोलार जिले में स्थित KGF, एक समय 'सोने का शहर' और 'मिनी इंग्लैंड' कहलाता था। 1880 से 2001 तक, यहां ब्रिटिश और भारत सरकार ने 900 टन से अधिक सोना निकाला। 2001 में माइनिंग बंद होने के बाद KGF एक भूतिया शहर बन गया। हाल ही में, मजदूरों और कर्मचारियों के एक संगठन ने PM मोदी को पत्र लिखकर दोबारा माइनिंग शुरू करवाने की मांग की है।
30 लाख टन सोने का भंडार, पर माइनिंग बंद; लोग बोले- कुली जैसी जिंदगी KGF में मिले सोने की कीमत बहुत ज्यादा होती है, लेकिन उसे बाहर निकालने वाले हाथों का भी अपना एक इतिहास होता है।
हाल ही में KGF के मजदूरों और कर्मचारियों के एक संगठन ने PM मोदी को लेटर लिखकर दोबारा माइनिंग शुरू करवाने की मांग की। दावा है कि अगर KGF में माइनिंग शुरू हुई तो भारत के लिए अगले 100 सालों तक यह फायदे का सौदा हो सकता है। पढ़िए ये रिपोर्ट... 'भारत सरकार KGF से अगले 100 सालों तक न सिर्फ मुनाफा कमा सकती है, बल्कि 2 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार भी मिलेगा। KGF में 20 गोल्ड माइंस और बन सकते हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे पास तकनीक नहीं है। हमारे पास दशकों पहले से तकनीक है, लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं किया गया।'दिवाकरण बताते हैं, 'KGF में सोने के 27 लोड हैं। इनमें अब तक सिर्फ 2 लोड से सोना निकाला गया है। 25 लोड अभी भी जस के तस हैं। अंग्रेजों ने सिर्फ दो लोड से सोना निकालने के बावजूद सालों तक अपना खजाना भरा। सोचिए 25 लोड में और कितना...
जॉन टेलर एंड संस ने मद्रास प्रेसिडेंसी के पड़ोसी तमिल और तेलुगु भाषी क्षेत्रों से मजदूरों की भर्ती की। ब्रिटिशर्स ने उच्च पदों पर कब्जा कर लिया और एंग्लो-इंडियन लोग सुपरवाइजर्स का काम करते थे। पंजाबियों को सिक्योरिटी गार्ड्स के तौर पर रखा गया। धीरे-धीरे KGF कई जाति के लोगों वाले शहर के तौर पर डेवलप होने लगा।KGF में हाई क्वालिटी के अयस्क मिलते थे। इसका मतलब है कि सोना भी हाई ग्रेड का होता था। अंग्रेजों ने ज्यादा से ज्यादा सोना निकालने के लिए गहराई तक खुदाई शुरू कर दी। मजदूर जितनी गहराई में जाने...
इसके बाद ब्रिटिश सरकार और माइनिंग कंपनी से जुड़े लोग बड़े पैमाने पर KGF का रुख करने लगे। उनके बड़े-बड़े बंगले और हवेलियां बननी शुरू हो गईं। अस्पताल, स्कूल, सोशल क्लब, बोटिंग लेक, गोल्फ कोर्स, स्विमिंग पूल और जिमखाना भी बना।कर्नाटक के पड़ोसी राज्यों आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से भी बड़ी संख्या में लोग खदानों में काम करने के लिए KGF आने लगे थे। शहर की बढ़ती आबादी को बसाने के लिए 1903 में रॉबर्टसनपेट नाम का एक रेजिडेंशियल टाउनशिप बनाया गया। यह आधुनिक भारत के पहले प्लांड रेजिडेंशियल इलाकों में से एक...
डॉ. राजेंद्र के मुताबिक, 'KGF के मजदूरों के काम करने का तरीका काफी अलग था। वे पहले 8000 फीट, करीब 2.5 KM सीधे शाफ्ट में जाते थे, फिर उसके नीचे 1 KM इनक्लाइन्ड शाफ्ट में जाकर काम करते थे। वे अपनी जान जोखिम में डालकर काम करते थे। हर दिन उनके लिए नया जन्म लेने जैसा होता था।’ जो लोग KGF छोड़कर नहीं गए, उन्होंने आसपास के शहरों में काम ढूंढा। मौजूदा समय में KGF के करीब 10 हजार लोग बेंगलुरु में काम करने के लिए जाते हैं। दोनों शहरों को जोड़ने वाली भारतीय रेलवे की 7 ट्रेनें ही इनकी लाइफलाइन है।
KGF सोना की खदान माइनिंग गरीबी समृद्धि
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