मशहूर लोक गायिका स्वर्गीय शारदा सिन्हा की असाधारण संगीत यात्रा और बिहार की लोक धरोहर को संजोने के प्रति उनकी अविस्मरणीय भूमिका को सम्मानित किया गया है. शारदा सिन्हा की आवाज़ अब सिर्फ एक संगीतकार की आवाज़ नहीं, बल्कि समर्पण, संघर्ष और बिहार के सांस्कृतिक समृद्धि की एक धरोहर बन चुकी है.
मशहूर लोक गायिका स्वर्गीय शारदा सिन्हा को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मरणोपरांत पद्मविभूषण पुरस्कार देने की घोषणा ने न केवल संगीत जगत को, बल्कि पूरे बिहार को गहरे गर्व और भावनाओं से भर दिया है. शारदा जी का निधन 5 नवंबर 2024 को हुआ था, लेकिन उनके गीत, उनकी आवाज़ और उनका संगीत आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं.8 फरवरी दूर है, लेकिन शेखपुरा में माहौल भरपूर है! सीएम नीतीश की यात्रा से पहले डेंटिंग-पेंटिंग जारीMission Save Water: 12 ज्योतिर्लिंग...
शारदा सिन्हा का संगीत सफर हमेशा से प्रेरणादायक रहा है. बचपन से ही उन्होंने संगीत में गहरी रुचि दिखाई थी. उनके पिता ने उनकी इस रुचि को पहचाना और उन्हें भारतीय नृत्य कला केंद्र में संगीत की शिक्षा दिलवाई. शिक्षा के साथ-साथ शारदा सिन्हा ने अपने परिवार की जिम्मेदारियों को भी निभाया. उन्होंने राजनीति शास्त्र में स्नातक की डिग्री ली और बाद में डॉ. बृजकिशोर सिन्हा से विवाह किया. शारदा सिन्हा की संगीत यात्रा आसान नहीं रही थी.
शारदा सिन्हा ने भोजपुरी के अलावा हिंदी, मैथिली और बज्जिका में भी गाने गाए, लेकिन उनकी आवाज ने सबसे ज्यादा पहचान छठ महापर्व के गानों के रूप में पाई. बिहार, झारखंड और अन्य राज्यों में छठ महापर्व की शुरुआत शारदा सिन्हा के गीतों के साथ होती है. उनका गाना"उगीहे सूरज देव" और"किया है छठी माई के पूजा" आज भी हर जगह सुनने को मिलता है और अगर इन गानों को अन्य दिनों में सुने तो यह उन दिनों की याद दिलाता है जब छठ महापर्व का माहौल शारदा सिन्हा की मधुर आवाज से और भी खास बन जाता था.
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