इन दिशा-निर्देशों से पहले इस साल छह नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने साल 2019 में घर तोड़ने के एक मामले में यूपी सरकार पर 25 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था. उस समय कोर्ट ने कहा था कि किसी भी सभ्य समाज में बुलडोज़र के ज़रिए इंसाफ़ नहीं होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उसका यह आदेश हर राज्य में भेजा जाए. सारे अधिकारियों को इसके बारे में बताया जाए.बुलडोज़र से किसी का आशियाना या घर तोड़ने से पहले सरकार या प्रशासन को क्या करना होगा, इसके बारे मेंयूपी मदरसा शिक्षा एक्ट: 17 लाख छात्रों को 'राहत', सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक करार दियाडोनाल्ड ट्रंप की अब तक की पसंद उनके दूसरे कार्यकाल के बारे में क्या इशारा करती है?
कोर्ट ने ये कहा कि घर या कोई जायदाद तोड़ने से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना होगा. अगर किसी राज्य के क़ानून में इससे लंबे नोटिस का प्रावधान हो तो उसका पालन करना होगा. इसमें कहा गया है कि सुनवाई करने के बाद अधिकारियों को आदेश में वजह भी बतानी होगी. इसमें ये भी देखना होगा कि किसी संपत्ति का एक हिस्सा ग़ैर क़ानूनी है या पूरी संपत्ति ही ग़ैर क़ानूनी है.अगर क़ानून में संपत्ति तोड़ने या गिराने के आदेश के ख़िलाफ़ कोर्ट में अपील करने का प्रावधान है तो उसका पालन किया जाना चाहिए.
कोर्ट ने इन स्थितियों से बचने के लिए भी निर्देश दिए हैं. जैसे- कलेक्टर को ईमेल करना, वेबसाइट पर सारे दस्तावेज़ों को नियमित तौर पर डालना वग़ैरह.अभी कोर्ट ने जो दिशा-निर्देश दिए हैं, उनके मुताबिक़ नोटिस और अंतिम आदेश, दोनों के बाद कम से कम 15 दिनों का समय होना चाहिए. अब उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे से ऐसी चीज़ पर रोक लगेगी.
हर राज्य में निर्माण से जुड़े क़ानून हैं. इसमें किसी मकान को तोड़ने से पहले नोटिस देने, सुनवाई करने जैसी प्रक्रिया दी हुई है. कोर्ट को ये भी देखना होगा कि किसी कार्रवाई में इनका पालन हुआ था या नहीं. इस मामले में याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कहा था कि वही संपत्ति तोड़ी गई है, जिनका मालिक किसी मामले में अभियुक्त था. किसी अपराध में अभियुक्त बनाए जाने के ठीक बाद उनकी संपत्ति तोड़ी गई.
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