चीनी यात्री ह्वेनत्सांग की पुस्तक से प्रयागराज की सांस्कृतिक महत्ता का पता चलता है. ह्वेनत्सांग ने प्रयागराज को एक ऐसा क्षेत्र बताया जहां जलवायु, स्वास्थ्य और फल के वृक्षों की प्रचुरता होती है.
प्रयागराज लगभग 1,400 वर्षों से चीनियों की पहली पसंद है. इसका स्पष्ट उल्लेख चीनी यात्री ह्वेनत्सांग ने भी अपनी पुस्तक में किया है. भारत की सांस्कृतिक विरासत से चीन और आसपास के देश खासे आकर्षित होते रहे हैं. इसीलिए प्राचीन काल में चीन ने बारी-बारी अपने पांच यात्रियों को भारत के सांस्कृतिक महत्व की जानकारी लेने के लिए भेजा. ह्वेनत्सांग ने यहां आकर 16 वर्षों तक भारत के कोने-कोने का अध्ययन किया. 644 ईस्वीं में उसने शक्तिशाली राजा हर्षवर्धन के राज्य को सबसे ज्यादा अन्न वाला बताया.
यही नहीं उसने अपनी किताब में लिखा है कि प्रयागराज जलवायु, स्वास्थ्य और सबसे ज्यादा फल वाले वृक्षों का क्षेत्र है. प्रयागराज व आसपास के लोग विनम्र, सुशील और विद्याप्रेमी होते हैं. यहां तमाम पुरातत्व और सर्वेक्षण से भी सिद्ध होता है कि प्रयाग यूं ही तीर्थराज नहीं बना. प्राचीन काल में 5 लाख से अधिक लोग जुटते रहे संगम की रेत परप्रयागराज के सांस्कृतिक महत्ता के बारे में ह्वेनत्सांग ने अपनी किताब सी-यू-की में लिखा है कि देश के बड़े-बड़े राजा और महाराजा यहां पर दान का उत्सव मनाने एकत्र हुआ करते थे. इनमें सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा हर्षवर्धन का शासन काल प्रमुख रहा. ह्वेनत्सांग की किताब में प्राचीनकाल में प्रयाग के महात्म्य का रोचक वर्णन मिलता है. ह्वेनत्सांग ने लिखा है कि प्राचीन काल में प्रयागराज में बड़े स्तर पर धार्मिक उत्सव मनाया जाता था, जिसमें 5 लाख से अधिक व्यक्ति एकत्र होते. इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में देश के बड़े-बड़े राजा और महाराजा हिस्सा लेते थे. उसने लिखा है कि इस बड़े राज्य का विस्तार 500 ली (05 ली=01 मील) तक है. प्रयाग दो पवित्र नदियों गंगा और यमुना के बीच 20 ली के घेरे में है. यहां की जलवायु उष्ण है. साथ ही स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद अनुकूल वातावरण है. मंदिर, अक्षय वट का भी किया उल्ले
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