आज का शब्द: निश्चल और धर्मवीर भारती की कविता- तीसरे पहर की अलसायी बेला में

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आज का शब्द: निश्चल और धर्मवीर भारती की कविता- तीसरे पहर की अलसायी बेला में
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' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- निश्चल , जिसका अर्थ है- जो अपने स्थान से न हटे, अचल, स्थिर । प्रस्तुत है धर्मवीर भारती की कविता- तीसरे पहर की अलसायी बेला में हिंदी हैं हम शब्द शृंखला में आज का शब्द है- घाट से लौटते हुए तीसरे पहर की अलसायी बेला में मैं ने अक्सर तुम्हें कदम्ब के नीचे चुपचाप ध्यानमग्न खड़े पाया मैं न कोई अज्ञात वनदेवता समझ कितनी बार तुम्हें प्रणाम कर सिर झुकाया पर तुम खड़े रहे अडिग, निर्लिप्त, वीतराग, निश्चल ! तुम ने कभी उसे स्वीकारा ही नहीं ! दिन पर...

और मैं ने तुम्हें प्रणाम करना भी छोड़ दिया पर मुझे क्या मालूम था कि वह अस्वीकृति ही अटूट बन्धन बन कर मेरी प्रणाम-बद्ध अंजलियों में, कलाइयों में इस तरह लिपट जायेगी कि कभी खुल ही नहीं पायेगी। और मुझे क्या मालूम था कि तुम केवल निश्चल खड़े नहीं रहे तुम्हें वह प्रणाम की मुद्रा और हाथों की गति इस तरह भा गयी कि तुम मेरे एक-एक अंग की एक-एक गति को पूरी तरह बाँध लोगे इस सम्पूर्ण के लोभी तुम भला उस प्रणाम मात्र को क्यों स्वीकारते? और मुझ पगली को देखो कि मैं तुम्हें समझती थी कि तुम कितने वीतराग हो कितने...

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