यह प्रोजेक्ट 2020 में उत्तर पश्चिम दिल्ली के हिरनकी गांव से आरंभ हुआ, जहां तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खुद इसकी शुरुआत की थी. उस समय ऐसा लग रहा था कि बायो डिकंपोजर पराली जलाने की समस्या का हल निकाल सकता है.
दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में पराली जलाने की घटनाएं हमेशा से चिंता का विषय रही हैं, लेकिन पूसा बायो डिकंपोजर के आने के बाद एक उम्मीद की किरण जगी थी. चार साल बाद, जब हम ग्रामीण इलाकों की वास्तविक स्थिति जानने पहुंचे, तो हमें बदलती हकीकत दिखाई दी. हिरनकी गांव में रहने वाले उमेश के खेत की पराली स्पष्ट रूप से दिखा रही थी कि बायो डिकंपोजर का छिड़काव इस बार नहीं हुआ. उमेश ने निराशा व्यक्त की और बताया कि इस साल उन्हें बायो डिकंपोजर उपलब्ध ही नहीं कराया गया.
उनका कहना था कि यदि पराली नहीं जलाई गई, तो गेहूं की बुवाई करना बेहद मुश्किल हो जाएगा. इसलिए चोरी-छिपे ही सही, उन्हें पराली जलानी पड़ती है. यह स्थिति बायो डीकंपोजर के प्रभावी उपयोग की कमी को दर्शाती है, जो कि पराली नष्ट करने का -अनुकूल समाधान हो सकता है. पूसा संस्थान में अब भी उम्मीद है बरकरार Advertisementपूसा कृषि संस्थान में बायो डीकंपोजर के प्रभावशाली उपयोग को लेकर हमारा दौरा काफी रोचक रहा. इस संस्थान में इस तकनीक पर गहन कार्य कर रहीं डॉ.
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