हिंदी हैं हम शब्द शृंखला में आज का शब्द अनुरंजित है, जिसका अर्थ है जिसका अनुरंजन हुआ हो, जिसका दिल बहलाया गया हो। आज के लेख में भगवतीचरण वर्मा की कविता प्रस्तुत की गई है जो अनुरंजित भावनाओं को व्यक्त करती है।
'हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- अनुरंजित, जिसका अर्थ है- जिसका अनुरंजन हुआ हो, जिसका दिल बहलाया गया हो। प्रस्तुत है भगवतीचरण वर्मा की कविता- तुम छवि की परिणीता सी तुम मृगनयनी, तुम पिकबयनी तुम छवि की परिणीता-सी, अपनी बेसुध मादकता में भूली-सी, भयभीता सी । तुम उल्लास भरी आई हो तुम आईं उच्छ्वास भरी, तुम क्या जानो मेरे उर में कितने युग की प्यास भरी । शत-शत मधु के शत-शत सपनों की पुलकित परछाईं-सी, मलय-विचुम्बित तुम ऊषा की अनुरंजित अरुणाई-सी ; तुम अभिमान-भरी आई हो अपना...
; आज हृदय में खिंच आई हो तुम असीम उन्माद लिए, जब कि मिट रहा था मैं तिल-तिल सीमा का अपवाद लिए । चकित और अलसित आँखों में तुम सुख का संसार लिए, मंथर गति में तुम जीवन का गर्व भरा अधिकार लिए । डोल रही हो आज हाट में बोल प्यार के बोल यहाँ, मैं दीवाना निज प्राणों से करने आया मोल यहाँ । अरुण कपोलों पर लज्जा की भीनी-सी मुस्कान लिए, सुरभित श्वासों में यौवन के अलसाए-से गान लिए , बरस पड़ी हो मेरे मरू में तुम सहसा रसधार बनी, तुममें लय होकर अभिलाषा एक बार साकार बनी । तुम हँसती-हँसती आई हो हँसने और हँसाने को,...
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