भारत में आमतौर पर माता-पिता अपने बच्चों को अपने साथ ही सुलाना पसंद करते हैं। इसे ही को-स्लीपिंग कहते हैं। वहीं वेस्टर्न देशों में को-स्लीपिंग को ज्यादा पसंद नहीं किया जाता। अब ऐसे में अगर आप भी जानना चाहते हैं कि इस तरीके से बच्चों को सुलाने के क्या-क्या फायदे और नुकसान हो सकते हैं। आइए जानते हैं को-स्लीपिंग के बारे में जरूरी...
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Co-Sleeping: को-स्लीपिंग का मतलब है माता-पिता और बच्चे का एक ही बिस्तर पर या एक ही कमरे में सोना। यह तरीका भारत के साथ-साथ कई संस्कृतियों में प्रचलित है। कई लोग इस तरीके से बच्चों को सुलाना ज्यादा सुरक्षित मानते हैं, तो वहीं कुछ का मानना है कि ऐसा करना ठीक नहीं होता। आइए जानते हैं कि को-स्लीपिंग के फायदे और नुकसान क्या हो सकते हैं। को-स्लीपिंग कितनी तरह के होते हैं? बेड-शेयरिंग- इसमें माता-पिता और बच्चा एक ही बिस्तर पर साथ सोते हैं। रूम-शेयरिंग- इसमें बच्चा और...
वाली माताओं के लिए। किस उम्र तक बच्चों को साथ सुलाना चाहिए? इस सवाल का कोई एक जवाब नहीं है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चों को 6 महीने की उम्र तक अपने माता-पिता के साथ सोना चाहिए, जबकि कुछ अन्य विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चों को 2 साल की उम्र तक या उससे भी ज्यादा समय तक अपने माता-पिता के साथ सोना चाहिए। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का सुझाव है कि माता-पिता को अपने बच्चे के साथ एक ही कमरे में सोना चाहिए, लेकिन अलग बिस्तर पर, कम से कम 6 महीने की उम्र तक। इनका यह भी कहना है कि बेड-शेयरिंग शिशुओं...
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