चीन दिसंबर 2024 में दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की योजना को मंजूरी दे चुका है। यह बांध पानी के जरिए बिजली का उत्पादन बढ़ाएगा और चीन को कोयले पर निर्भरता घटाने में मदद करेगा। लेकिन इसकी जगह और विशाल आकार को लेकर चिंताएं भी खड़ी हो रही हैं।
इस महाडैम को बनने में कई साल लगेंगे लेकिन इससे होने वाले संभावित पर्यावरणीय नुकसान पर बहस छिड़ गई है.विश्व में सबसे ज़्यादा बांध चीन ने बनाये हैं. दिसंबर 2024 में चीन ने विश्व का सबसे बड़ा और महत्वाकांक्षी बांध या डैम बनाने की योजना को मंज़ूरी दी.
दुनिया में अब तक का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध चीन का थ्री गॉर्जेस बांध है जो चीन की सबसे लंबी नदी यांग्त्ज़ी पर बना है. ब्रायन आयलर कहते हैं कि अब तक यह पता नहीं चल पाया है कि कितने लोगों को विस्थापित करके दूसरी जगह बसाया जाएगा. इस बांध के निचले हिस्से में भारत और चीन की सीमा है. भारत में यह नदी ब्रह्मपुत्र कहलाती है. भारत को चिंता है कि चीन इस बांध के ज़रिए नदी का पानी अपने उन क्षेत्रों की तरफ कर सकता है जहां पानी की किल्लत है.
वो कहते हैं कि "भारत के बांध से काफ़ी कम मात्रा में बिजली बनायी जाएगी और इस पर अभी विचार ही हो रहा है. इसका इस्तेमाल क्षेत्र की बिजली की ज़रूरत को पूरा करने के लिए किया जाएगा. लेकिन यह बांध ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ की स्थिति में लोगों की रक्षा भी कर सकता है."नीरज सिंह मनहास कहते हैं कि "चीन किसी अन्य देश से बात किए बिना ही अपना बांध बना रहा है. अगर देशों के बीच इस बारे में सहमति ना बन पाए तो तनाव बढ़ जाता है.
प्रोफ़ेसर मार्क ज़ैटून बताते हैं, "यह बांध ब्लू नाइल नदी पर बना है जो इथियोपिया और सूडान से बहते हुए मिस्र जाती है. ये दोनों देश इस बांध के बनने से चिंतित हैं क्योंकि इन दोनो देशों में बहुत कम बारिश होती है और हज़ारों किसान परिवार उपजीविका के लिए नाइल नदी पर निर्भर हैं. अगर इसके बहाव में बदलाव आया तो उन पर बुरा असर पड़ सकता है. इस समस्या को सुलझाने के लिए इन देशों के बीच सकारात्मक बातचीत ज़रूरी है.
प्रोफ़ेसर मार्क ज़ैटून कहते हैं, "तनाव तो रहेगा क्यों कि देश बांध बनाते रहेंगे. अब पानी को लेकर बेहतर कानून हैं, विज्ञान से भी सहायता मिल रही है लेकिन नदियों के पानी को लेकर विवाद बने हुए हैं. राजनीतिक मतभेदों और जलवायु परिवर्तन से यह समस्याएं और विकट होती जा रही हैं.
उन्होंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि नीतियों में स्थिति के अनुसार बदलाव आते रहेंगे और उन्हें अधिक यथार्थपूर्ण बनाया जाएगा. चीन का अनुमान है कि वहां 2030 तक कार्बन उत्सर्जन अपने चरम तक पहुंच जाएगा और वो चाहता है तब तक स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों का इस्तेमाल शुरू हो जाए."
CHINA BIGHIDROELECTRIC DAM ENVIRONMENT WATER RESOURCES ENERGY PRODUCTION
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