क्या उत्तर भारत में गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन करना सही? जानिए इसके कारण और रहस्य

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क्या उत्तर भारत में गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन करना सही? जानिए इसके कारण और रहस्य
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कैलाश पर्वत... जन्म और मरण के चक्र से दूर, धरती का वो स्थल जहां मोक्ष बसता है. वहां न हर्ष का निवास है, न विषाद की छाया. जहां लोभ-मोह, क्रोध-अहंकार जैसे विकारों की कोई जगह नहीं. वह कैलाश, जहां महादेव समाधि में होते हैं, नंदी उनकी सेवा में होते हैं और जहां रहकर देवी पार्वती सृष्टि का पोषण करती हैं, लेकिन आज स्थिति कुछ अलग थी.

महादेव तो समाधि में थे, पर देवी पार्वती विचलित थीं. विचलित इसलिए, क्योंकि उनकी पुत्री अशोक सुंदरी तपस्या के लिए चली गईं थीं और पुत्र कार्तिकेय पिता से मतभेद के कारण कैलाश छोड़कर चले गए थे.

शिव पुराण, स्कंद पुराण और गणेश जी को समर्पित प्राचीन अथर्वशीर्ष संहिता में गणेशजी के जन्म और गणेश चतुर्थी के मनाए जाने और इसके महत्व की यही कथा थोड़े बहुत अलग-अलग संदर्भों के साथ दर्ज है. लोक कथाओं में गणेश जन्म और उत्पत्ति का ऐसा ही किस्सा मिलता है, जो दानी-नानी की कहानियों में शामिल रहा है और पूजा पद्धतियों का भी हिस्सा बना हुआ है.

यहां बता दें कि कुबेर का महल लंका में ही था, जिसे बाद में रावण ने हथिया लिया था. लंका उस समय तक यक्षों की नगरी हुआ करती थी, जिसे रावण ने कुबेर से छीन लिया था और फिर उसे रक्ष संस्कृति में बदल दिया था. गणेशजी कुबेर की लंका में गए और उन्होंने वहां उसका पूरा भंडार खाली कर दिया और इस तरह कुबेर का घमंड तोड़ा.

महाराष्ट्र और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में भाद्रपद मास की गणेश चतुर्थी के दिन पूजन करने की मान्यता बहुत प्राचीन रही है. हालांकि लंबे समय तक ये सिर्फ घर में होने वाली एक व्रत-पूजा थी, जिसमें मिट्टी-हल्दी, दूध से हथेली के आकार की गणेश प्रतिमाएं बनाई जाती थीं और फिर पूरे परिवार के सदस्य मिलकर उनकी पूजा करते थे. छत्रपति शिवाजी के समय में मराठा साम्राज्य गणेश चतुर्थी को एक उत्सव की तरह मनाने लगा था.

कहते हैं कि दक्षिण की वह भूमि कई वर्षों से अकाल से पीड़ित थी, गणेश जी के आने के बाद वहां वर्षा हुई और धन समृद्धि भी आई. दक्षिण के राज्यों में कार्तिकेय बहुत ही अधिक पूजनीय हैं. वह उनके रक्षक और स्वामी कहलाते हैं. अपने स्वामी के छोटे भाई के आगमन पर लोगों ने उनका राजा की तरह सम्मान किया. गणेश जी ने 10 दिन वहां निवास किया. इसलिए वह दक्षिण के राज्यों में अतिथि की तरह पूजे जाते हैं और लोग उनसे अगले वर्ष फिर से आने की कामना करते हैं.

उत्तर भारत में गणेश-लक्ष्मी को लेकर मान्यता है कि वह सभी के घरों में निवास करते हैं और उनके रूप में हर किसी की आर्थिक संपन्नता बनी रहती है. इसीलिए गृहस्थ लोगों के घरों में गणेश-लक्ष्मी को हमेशा ही स्थापित करके रखा जाता है, उनकी विदाई दीवाली जैसे मौकों पर तभी की जाती है, जब उसी दिन नई प्रतिमा की स्थापना की जाती है. घरों में गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमा हथेलियों से भी छोटी होती हैं और जो कि घरों में देव प्रतिमा रखने का शास्त्रीय नियम भी है.

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