aaj ka shabd bhuwan maithilisharan gupt best poetry panchwati ki chhaya men.आज का शब्द: भुवन और मैथिलीशरण गुप्त की कविता- पंचवटी की छाया में. Read more about hindihainhum, hindi hain hum, ujaas on amar ujala kavya.
' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- भुवन , जिसका अर्थ है- जगत, जन, लोग, जल , लोक। प्रस्तुत है मैथिलीशरण गुप्त की कविता- पंचवटी की छाया में चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में, स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में। पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से, मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥ पंचवटी की छाया में है , सुन्दर पर्ण-कुटीर बना, जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर वीर निर्भीकमना, जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता...
जीवन है! मर्त्यलोक-मालिन्य मेटने, स्वामि-संग जो आई है, तीन लोक की लक्ष्मी ने यह, कुटी आज अपनाई है। वीर-वंश की लाज यही है, फिर क्यों वीर न हो प्रहरी, विजन देश है निशा शेष है, निशाचरी माया ठहरी॥ कोई पास न रहने पर भी, जन-मन मौन नहीं रहता; आप आपकी सुनता है वह, आप आपसे है कहता। बीच-बीच मे इधर-उधर निज दृष्टि डालकर मोदमयी, मन ही मन बातें करता है, धीर धनुर्धर नई नई- क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह, है क्या ही निस्तब्ध निशा; है स्वच्छन्द-सुमंद गंधवह, निरानंद है कौन दिशा? बंद नहीं, अब भी चलते हैं, नियति-नटी...
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