आज का शब्द: निष्प्रभ और भगवतीचरण वर्मा की रचना- केवल मैं हूँ अपने पास

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आज का शब्द: निष्प्रभ और भगवतीचरण वर्मा की रचना- केवल मैं हूँ अपने पास
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आज का शब्द: निष्प्रभ और भगवतीचरण वर्मा की रचना- केवल मैं हूँ अपने पास

' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- निष्प्रभ , जिसका अर्थ है- जिसमें प्रभा या चमक न रह गई हो। प्रस्तुत है भगवतीचरण वर्मा की कविता- केवल मैं हूँ अपने पास आज शाम है बहुत उदास केवल मैं हूँ अपने पास । दूर कहीं पर हास-विलास दूर कहीं उत्सव-उल्लास दूर छिटक कर कहीं खो गया मेरा चिर-संचित विश्वास । कुछ भूला सा और भ्रमा सा केवल मैं हूँ अपने पास एक धुन्ध में कुछ सहमी सी आज शाम है बहुत उदास । एकाकीपन का एकान्त कितना निष्प्रभ , कितना क्लान्त । थकी-थकी सी मेरी साँसें पवन घुटन से भरा...

खोया-खोया एकाकीपन का एकान्त मेरे आगे जो कुछ भी वह कितना निष्प्रभ, कितना क्लान्त । उतर रहा तम का अम्बार मेरे मन में व्यथा अपार । आदि-अन्त की सीमाओं में काल अवधि का यह विस्तार क्या कारण? क्या कार्य यहाँ पर ? एक प्रश्न मैं हूँ साकार । क्यों बनना? क्यों बनकर मिटना ? मेरे मन में व्यथा अपार औ समेटता निज में सब कुछ उतर रहा तम का अम्बार । सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास, आज शाम है बहुत उदास । जोकि आज था तोड़ रहा वह बुझी-बुझी सी अन्तिम साँस और अनिश्चित कल में ही है मेरी आस्था, मेरी आस । जीवन रेंग रहा है लेकर...

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