आज का शब्द: निस्पंद और वृन्दावनलाल वर्मा की कविता- भारत पथिक
' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- निस्पंद , जिसका अर्थ है- जिसमें स्पंदन न हो, कंपनरहित। प्रस्तुत है वृन्दावनलाल वर्मा की कविता- भारत पथिक चतुर्दिक भूमि कण्टका-कीर्ण अंधेरा छाया था सब ओर, मार्ग के चिन्ह हुए थे लुप्त, घटा घुमड़ी थी नभ में घोर बुद्धि की सूझ हुई थी मंद, प्रेरणा की गति भी निस्पंद , खेल सब आशा के थे बंद, कष्ट का नहीं कहीं था छोर। 2 भटक कर चला गया था दूर, मानसिक शक्ति हुई ही चूर, बजे टूटी तन्ने के तार- नहीं क्या होगा अब उद्धार। जगत में व्याप हुई वह हूक, न...
उच्छास, किरण का जाल पसार-पसार, किया ऊषा ने मंजुल हास, उच्चरित हुआ विश्व का प्राण, भूला पथिक पा गया प्राण, पवन के कण-कण का उद्भास जाकर करने लगा विलास। 5 बढ़ा किरणों का क्रमश: दाप कभी मृदुल कभी आप, किए सब क्षीण पुराने शाप, तपों से धर निज रूप कठोर, भक्त ने की, प्रणाम सौ बार, कभी तो हुई नहीं स्वीकार, कभी कर भी ली अंगीकार, हृदय में पीर उठी झकझोर। 6 बुरा हूँ तो किसका हूँ देव भला हूँ किसका हूँ भक्त दया सब बनी रहे अविराम कमी है नहीं तुम्हारे पास हुई यदि हँसी भक्त की कभी बिगड़ता तो उसका कुछ नहीं,...
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