आज का शब्द: आदर्श और मैथिलीशरण गुप्त की कविता- सर्वस्व करके दान जो चालीस दिन भूखे रहे
' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- आदर्श , जिसका अर्थ है- दर्पण, शीशा, वह जिसके रूप और गुण आदि का अनुकरण किया जाए। प्रस्तुत है मैथिलीशरण गुप्त की कविता- सर्वस्व करके दान जो चालीस दिन भूखे रहे आदर्श -जन संसार में इतने कहाँ पर हैं हुए? सत्कार्य्य-भूषण आर्य्य-गण जितने यहाँ पर हैं हुए। हैं रह गए यद्यपि हमारे गीत आज रहे सहे, पर दूसरों के भी वचन साक्षी हमारे हो रहे॥ गौतम, वशिष्ठ-समान मुनिवर ज्ञान-दायक थे यहाँ, मनु, याज्ञवल्क्य-समान सत्तम विधि-विधायक थे यहाँ। वाल्मीकि वेदव्यास...
किए इस देश ने॥ आमिष दिया अपना जिन्होंने श्येन-भक्षण के लिए, जो बिक गए चाण्डाल के घर सत्य-रक्षण के लिए! दे दीं जिन्होंने अस्थियाँ परमार्थ हित जानी जहाँ, शिवि, हरिश्चंद्र, दधीच से होते रहे दानी यहाँ॥ सत्पुत्र पुरु से थे जिन्होंने तात-हित सब कुछ सहा, भाई भरत-से थे जिन्होंने राज्य भी त्यागा अहा! जो धीरता के, वीरता के प्रौढ़तम पालक हुए, प्रह्लाद, ध्रुव, कुश, लव तथा अभिमन्यु-सम बालक हुए॥ वह भीष्म का इन्द्रिय दमन, उनकी धरा-सी धीरता, वह शील उनका और उनकी वीरता, गंभीरता। उनकी सरलता और उनकी वह विशाल...
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