आज का शब्द: पलथी और नागार्जुन की कविता- तुंग हिमालय के कंधों पर

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आज का शब्द: पलथी और नागार्जुन की कविता- तुंग हिमालय के कंधों पर
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आज का शब्द: पलथी और नागार्जुन की कविता- तुंग हिमालय के कंधों पर

' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- पलथी , जिसका अर्थ है- दाहिने पैर का पंजा बाईं पिंडली के नीचे और बाएं पैर का पंजा दाहिनी पिंडली के नीचे दबाकर बैठने की स्थिति। प्रस्तुत है नागार्जुन की कविता- तुंग हिमालय के कंधों पर अमल धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है । छोटे-छोटे मोती जैसे उसके शीतल तुहिन कणों को, मानसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर गिरते देखा है, बादल को घिरते देखा है । तुंग हिमालय के कंधों पर छोटी-बड़ी कई झीलें हैं, उनके श्यामल नील सलिल में समतल देशों से...

नाभि से उठने वाले निज के ही उन्मादक परिमल- के पीछे धावित हो-होकर तरल-तरुण कस्तूरी मृग को अपने पर चिढ़ते देखा है। बादल को घिरते देखा है। कहाँ गया धनपति कुबेर वह? कहाँ गयी उसकी वह अलका? नहीं ठिकाना कालिदास के व्योम-प्रवाही गंगाजल का, ढूँढ़ा बहुत परन्तु लगा क्या मेघदूत का पता कहीं पर, कौन बताए वह छायामय बरस पड़ा होगा न यहीं पर, जाने दो, वह कवि-कल्पित था, मैंने तो भीषण जाड़ों में नभ-चुम्बी कैलाश शीर्ष पर, महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है, बादल को घिरते देखा है। शत-शत निर्झर-निर्झरणी-कल...

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