आज का शब्द: उद्दाम और हरिवंशराय बच्चन की कविता- हाला
' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- उद्दाम , जिसका अर्थ है- बंधनरहित, निरंकुश, उद्दंड, स्वतंत्र। प्रस्तुत है हरिवंशराय बच्चन की कविता- हाला उल्लास-चपल, उन्माद-तरल, प्रति पल पागल--मेरा परिचय ! 1- जग ने ऊपर की आँखों से देखा मुझको बस लाल-लाल, कह डाला मुझको जल्दी से द्रव माणिक या पिघला प्रवाल, जिसको साक़ी के अधरों ने चुम्बित करके स्वादिष्ट किया, कुछ मनमौजी मजनूँ जिसको ले-ले प्यालों में रहे ढाल; मेरे बारे में है फैला दुनिया में कितना भ्रम-संशय.
उल्लास-चपल, उन्माद-तरल, प्रति पल पागल--मेरा परिचय ! 5- अवतीर्ण रूप में भी तो है मेरा इतना सुरभित शरीर, दो साँस बहा देती मेरी जग-पतझड में मधुऋतु समीर, जो पिक-प्राणों में कर प्रवेश तनता नभ में स्वर का वितान, लाता कमलों की महफिल में नर्तन करने को भ्रमर-भीड़; मधुबाला के पग-पायल क्या पाएँगे मेरे मन पर जय ! उल्लास-चपल, उन्माद-तरल, प्रति पल पागल--मेरा परिचय ! 6- लवलेश लास लेकर मेरा झरना झूमा करता इसी पर, सर हिल्लोलित होता रह-रह, सरि बढ़ती लहरा-लहराकर, मेरी चंचलता की करता रहता है सिंधु नक़ल असफल;...
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