आज का शब्द: आसीन और गोपालसिंह नेपाली की कविता- मेरा धन है स्वाधीन क़लम

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आज का शब्द: आसीन और गोपालसिंह नेपाली की कविता- मेरा धन है स्वाधीन क़लम
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आज का शब्द: आसीन और गोपालसिंह नेपाली की कविता- मेरा धन है स्वाधीन क़लम

' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- आसीन , जिसका अर्थ है- बैठा हुआ, स्थित। प्रस्तुत है गोपाल सिंह नेपाली की कविता- मेरा धन है स्वाधीन क़लम मेरा धन है स्वाधीन क़लम राजा बैठे सिंहासन पर, यह ताजों पर आसीन क़लम जिसने तलवार शिवा को दी रोशनी उधार दिवा को दी पतवार थमा दी लहरों को ख़ंजर की धार हवा को दी अग-जग के उसी विधाता ने, कर दी मेरे आधीन क़लम रस-गंगा लहरा देती है मस्ती-ध्वज फहरा देती है चालीस करोड़ों की भोली क़िस्मत पर पहरा देती है संग्राम-क्रांति का बिगुल यही, है यही प्यार...

कैंची-दर्ज़ी से आदत न रही कुछ लिखने की निंदा-वंदन ख़ुदग़र्ज़ी से कोई छेड़े तो तन जाती, बन जाती है संगीन क़लम मत पूछो छलने वालों से कतराओ जलने वालों से पूछो जनता से और सही राहों पर चलने वालों से क्या और किसी की है ऐसी, इठलाती हुई हसीन क़लम फूलों जैसा हर मुखड़ा है हर शब्द हृदय का टुकड़ा है छूकर यह क़लम, तराना बन जाता हर दिल का दुखड़ा है मुस्कान रचाती आँसू में, ग़म में डूबी ग़मगीन क़लम लेकर रंगीनी की बहार इठलाते चलते अलंकार हर दर्द बना देता कवि को सब से मस्ताना गीतकार नित नई कल्पना करती है, यह अनुभव की...

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