इंदौर हाईकोर्ट का गर्भवती रेप पीड़िता के गर्भपात मामले में महत्वपूर्ण फैसला

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इंदौर हाईकोर्ट का गर्भवती रेप पीड़िता के गर्भपात मामले में महत्वपूर्ण फैसला
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इंदौर हाईकोर्ट ने एक नाबालिग रेप पीड़िता के गर्भपात मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने गर्भपात की इजाजत दे दी है और पुलिस, ज़िला अदालत और हाईकोर्ट रजिस्ट्री के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया तय की है।

इंदौर: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने एक नाबालिग रेप पीड़िता के गर्भपात मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। पीड़िता 20 हफ्ते से ज़्यादा की गर्भवती थी। कोर्ट ने पुलिस, ज़िला अदालत और हाईकोर्ट रजिस्ट्री के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया तय की है। इससे भविष्य में ऐसी स्थितियों में समय पर कानूनी और मेडिकल मदद मिल सकेगी। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के 'बेहद असंवेदनशील रवैये' की आलोचना की। निचली अदालत ने पीड़िता से मेडिकल दस्तावेज़ मांगे थे। गर्भपात की मांगी थी इजाजतमामला तब शुरू हुआ जब पीड़िता की मां ने 30

नवंबर को निचली अदालत में गर्भपात की अर्ज़ी दी। तब पीड़िता 19 हफ्ते की गर्भवती थी। लेकिन 5 दिसंबर को निचली अदालत ने अर्ज़ी खारिज कर दी। कारण बताया गया कि मेडिकल दस्तावेज़ नहीं दिए गए थे।हाईकोर्ट ने जताई नाराजगीजस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने अपने आदेश में कई अहम बातें कहीं। उन्होंने कहा, 'MTP Act, 1971 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि इस तरह के आवेदन को जिला अदालत में दायर किया जा सकता है और उस पर विचार किया जा सकता है। यानी, ज़िला अदालत को इस तरह के मामले देखने का अधिकार ही नहीं है। गर्भपात जीवन और मृत्यु का मामला है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 से जुड़ा है। इसलिए ऐसे मामलों पर सिर्फ़ हाईकोर्ट ही सुनवाई कर सकता है। हाईकोर्ट ऐसा संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत कर सकता है। इसलिए निचली अदालत को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए था।निचली अदालत ने मांगे थे क्रूरता के सबूतहाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने साफ़ कहा कि एक रेप पीड़िता से मेडिकल दस्तावेज़ मांगना क्रूरता है। ऐसा किसी भी अदालत को नहीं करना चाहिए। राज्य के वकील ने उज्जैन के सिविल सर्जन और मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी की रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में कहा गया था कि लड़की गर्भपात के लिए मेडिकली फिट है। उसे सभी ज़रूरी जानकारी देकर उसकी लिखित सहमति ली जानी चाहिए।हाईकोर्ट ने स्वीकार की याचिकाहाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली। कोर्ट ने कहा, 'मामले के ऐसे तथ्यों और परिस्थितियों में, यह न्यायालय इस याचिका को स्वीकार करना और याचिकाकर्ता की बेटी को सिविल सर्जन, मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी/अधीक्षक जिला उज्जैन में उचित प्रक्रिया का पालन करके उसकी गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति देना समीचीन समझता है। कोर्ट ने कह

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गर्भपात रेप पीड़िता हाईकोर्ट फैसला मध्य प्रदेश

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