कजाकिस्तान: परमाणु कचरे का गढ़

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कजाकिस्तान: परमाणु कचरे का गढ़
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कजाकिस्तान ने साल 2002 में दुनिया भर के देशों को अपने परमाणु कचरा जमा करने की अनुमति दे दी थी। इस फैसले को पैसे की तंगी के चलते लिया गया था, लेकिन क्या इसने अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए ये आखिरी उपाय अपनाया था? इस लेख में, हम कजाकिस्तान के गरीब आर्थिक परिस्थितियों और परमाणु कचरे को स्वीकार करने से जुड़े जोखिमों पर प्रकाश डालते हैं।

भोपाल गैस कांड में निकले यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे पर इन दिनों भारी हल्ला है. हाल में इस रासायनिक वेस्ट को भोपाल से हटाकर पीथमपुर भेज दिया गया ताकि वहीं इसे जलाकर खत्म किया जा सके. इसके बाद लोग भड़क उठे. प्रोटेस्ट होने लगे कि कचरा किसी भी हाल में उनके यहां न जलाया जाए. एक्सपर्ट सारे लॉजिक देकर हार गए कि इसमें अब कोई जहर नहीं, लेकिन जनता है कि मानने को राजी नहीं. ये हाल एक राज्य का है, जहां एक हिस्से से दूसरे हिस्से में केमिकल वेस्ट को स्वीकारा नहीं जा रहा.

सोवियत से अलग होने पर इस देश के पास परमाणु भंडार था, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति ने इसे सरेंडर कर दिया. इससे इंटरनेशनल स्तर पर तो देश की जमकर वाहवाही हुई लेकिन साथ ही एक अलग किस्म का खतरा मंडराने लगा. Advertisementआर्थिक फायदे के बदले राजी होने लगा देशदेश गरीब था, साथ ही सैन्य तौर पर कमजोर भी. अपनी ताकत खुद ही उसने खत्म कर डाली थी. ऐसे में पश्चिमी देशों ने मिलकर उसे तैयार कर लिया कि वे अपने यहां का जहरीला कचरा उसके यहां डंप करेंगे. दलील ये थी कि कजाकिस्तान में पहले भी तो परीक्षण होते रहे हैं.

हमने इस समाचार को संक्षेप में प्रस्तुत किया है ताकि आप इसे तुरंत पढ़ सकें। यदि आप समाचार में रुचि रखते हैं, तो आप पूरा पाठ यहां पढ़ सकते हैं। और पढो:

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