कर्पूरी ठाकुर : सादगी का प्रतीक

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कर्पूरी ठाकुर : सादगी का प्रतीक
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यह लेख कर्पूरी ठाकुर के जीवन की सादगी और उनके नीतिगत फैसलों पर प्रकाश डालता है। उनके जीवन के प्रसंगों को प्रस्तुत करते हुए यह बताता है कि कैसे उन्होंने कभी भी शक्ति और धन प्रदर्शन का लोभ नहीं किया।

पटना: दलित पिछड़ों और शोषितों के नेता कर्पूरी ठाकुर का जीवन काफी सादगी से भरा था। अपने पूरे जीवन में इन्होंने सादगी का पालन किया। चाहे वो विधायक रहे,नेता प्रतिपक्ष रहे या फिर मुख्यमंत्री , उनकी सादगी का रंग वही रहा जो उनके सामाजिक राजनीति जीवन के प्रारंभ काल में रहा। धन संचय, घमंड, साजिशपूर्ण राजनीति उनके राजनीति क जीवन के हिस्से ही नहीं रहे। जीवन में ऐसे कई मौके आए जब वे ऐश्वर्य,घमंड और ताकत का प्रदर्शन कर सकते थे। पर ऐसे समय में वो सादगी के साथ डटे रहे। इनके जीवन के कई प्रसंग हैं जो किसी के

जीवन में सीख के लिए काफी है। उनके सभी किस्से इस छोटी सी रिपोर्ट में तो समा नहीं सकते, पर जानिए कुछ ऐसे किस्से जो आपको चौंका देंगे। सीएम कर्पूरी ठाकुर की बेटी की शादी आम तौर पर धनकुबेर या विधायक स्तर के नेता भी शादी में अपने ऐश्वर्य का दिखावा करते हैं। उनकी कोशिश यह होती है कि ऐसी शादी अपने नहीं देखी। ऐसी शादियों में मंत्रियों का काफिला बुलाया जाता है। यहां तक कि सीएम को भी बुलाने की कोशिश कर शादी को महत्वपूर्ण बनाने की कोशिश की जाती है। लेकिन तब सीएम रहे कर्पूरी ठाकुर बेहद अलग थे। कर्पूरी ठाकुर की बेटी की शादी थी। कर्पूरी ठाकुर चाहते थे कि यह शादी देवघर के मंदिर में किसी तरह से निपटा दिए जाएं। लेकिन वर पक्ष और कर्पूरी ठाकुर के संबंधी यह सुनते भड़क गए। और दबाव बना कर किसी तरह से गांव में शादी कराने को ले कर उन्हें राजी कराया गया। बड़ी मुश्किल से वे माने। इस तरह से एक मुख्यमंत्री की बेटी की शादी बिना किसी ताम झाम के हुई। जमींदार ने पिता को बेंत से पीटा था यह घटना उस वक्त की है जब कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने। उसी दिन उस गांव के जमींदार ने कर्पूरी ठाकुर के पिता को अपने ड्योढ़ी पर बुला कर बेंत से पीटा था। यह वह वक्त था जब उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद गांव और आस-पास के गांवों से लोग उनके पुश्तैनी घर जश्न मना रहे थे। कर्पूरी ठाकुर के पिता जी घर आए लोगों की आवभगत कर रहे थे। इस वजह से वे स्थानीय जमींदार के घर नहीं जा सके। जमींदार के घर जाना उनका नियमित का काम था। उस दिन आने में देर हुई तो वहीं के जमींदार ने देरी से आने के लिए उनके दादा को बेंत से पीटा। पिटाई का पता चलते ही सीएम पहुंचे गांव लेकिन जब कर्पूरी ठाकुर को जब यह पता चला तो वे गांव पहुंचे। पुलिस ने कोठी को घेर लिया। सबको यकीन था कि सामंत को गिरफ्तार कर लिया जाएगा। वहां बड़ी भीड़ जमा हो गई थी। लेकिन कर्पूरी ठाकुर सामंत के पास गए और कहा कि लाइए आपकी दाढ़ी मैं बनाता हूं। मेरे पिता बूढ़े हो गए हैं। अगर आप आज्ञा दें तो मैं आपकी हजामत बना दूं। जमींदार उनका चेहरा ही देखते रह गया। एक कहानी सिद्दीकी की जुबानी वरिष्ठ राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी कर्पूर ठाकुर से जुड़ी अपनी यादें सुनाते कहते हैं कि एक बार वे उनके साथ दिल्ली गए थे। दिन भर मीटिंग में व्यस्त रहने के कारण सिद्दीकी थक गए थे। वे बिहार निवास पहुंचे और सिद्दीकी को लगा कि अब जननायक आराम करेंगे। रात काफी हो चुकी थी। सिद्दीकी जननायक के बिस्तर पर लेट गए और सो गए। सुबह उठे तो देखा कि जननायक फर्श पर सो रहे हैं। फीस भरने के लिए जमींदार के यहां भरा पानी जननायक कर्पूरी ठाकुर के बचपन की एक कहानी काफी चर्चित रही है। जब वे पढ़ाई कर रहे थे तो उस समय उनके पास फीस जमा करने के पैसे नहीं थे। तब वे गांव के जमींदार के पास गए। तब जमींदार ने फीस के पैसे देने के लिए शर्त रखी। कहा कि पैसे चाहिए तो काफी मेहनत करने होंगी। और तब उस जमींदार ने पैसे देने के बदले बालक कर्पूरी ठाकुर से 27 बाल्टी पानी भरवाया था

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