कल्पवास: कायाकल्प और मोक्ष की खोज

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कल्पवास: कायाकल्प और मोक्ष की खोज
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कल्पवास एक महीने का कठिन व्रत है जो प्रयाग जैसे तीर्थों के तट पर किया जाता है। यह शरीर और मन को शुद्ध करके मोक्ष की ओर ले जाने का प्रयास करता है।

कल्पवास माघ माह में किए जाने वाला व्रत होता है, जिसका उद्देश्य तन और मन में उपस्थित विकारों निकालकर मोक्ष की राह की ओर अग्रसर होना है। एक महीने का यह व्रत पूरे वर्ष शरीर तथा मन को उर्जा सम्पन्न करता है। प्रयागराज के संगम तट पर एक माह रहकर लोग कल्पवास करते हैं। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है।क्या है कल्पवास - कभी-कभी आज की युवा पीढ़ी यह प्रश्न उठाती है कि आखिर ’ कल्पवास ‘ क्या है? वस्तुतः यह एक ऐसा व्रत है जो प्रयाग आदि तीर्थ ों के तट पर किया जाता है। यह बहुत ही कठिन व्रत है, इस व्रत में

सूर्योदय से पूर्व स्नान, मात्र एक बार भोजन, पुनः मध्यान्ह तथा सायंकाल तीन बार स्नान का विधान है परन्तु अधिकांश लोग केवल सुबह, शाम स्नान करते हैं। कल्पवास के व्रत को एक माह में पूर्ण करते हैं। कल्पवास का अपना एक अलग विधान है। मान्यताओं के अनुसार जो कल्पवासी लगातार बारह वर्ष तक अनवरत कल्पवास करते हैं, वह मोक्ष के भागी होते हैं। एक माह में कल्पवास की पूर्ति कर विशेष रूप से उसका उध्यापन किया जाता है। कर्मकाण्ड अथवा पूजा में हर कार्य संकल्प के साथ शुरू होता है और संकल्प में “श्री श्वेत वराह कल्पे” का सम्बोधन किया जाता है। इस कल्प का तात्पर्य यह है कि सृष्टि के सृजन से लेकर अब तक 11 कल्प व्यतीत हो चुके हैं और बारहवां कल्प चल रहा है। ’कल्प‘ का एक अर्थ तो सृष्टि के साथ जुड़ा है और दूसरे ’कल्प‘ का तात्पर्य कायाकल्प से है। कायाकल्प अर्थात् शरीर का शोधन। इस कल्प को करने का आयुर्वेद शास्त्र में अलग-अलग विधान है। जैसे दुग्ध कल्प जिसमें एक निश्चित समय तक दूध अथवा मट्ठे का सेवन कर शरीर का कायाकल्प किया जाता है और गंगा तट पर रहकर गंगाजल पीकर एक वक्त भोजन, भजन, कीर्तन, सूर्य अर्घ्य, स्नानादि धार्मिक कृत्यों के समावेश से शरीर का शोधन अर्थात् शरीर और मन को आध्यात्मिक चेतना से जोड़ने की प्रक्रिया ही कल्पवास की वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इस बार महाकुम्भ में कुछ लोग पौष पूर्णिमा से और कुछ लोग मकर संक्रान्ति से कल्पवास प्रारम्भ करेंगे

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