प्रयागराज कुंभ में नागा साधुओं के बारे में जानने के लिए हमने मणिराज पुरी नामक एक नागा साधु से बात की. उन्होंने नागा साधु बनने की प्रक्रिया, जीवन के उद्देश्य और अपने शरीर के बारे में जानकारी दी.
प्रयागराज कुंभ मेला के लिए तैयार है. देश के विभिन्न हिस्सों से नागा साधू और साध्वियाँ आ रहे हैं. नागा साधु ओं के बारे में कई सवाल हैं. इस संबंध में प्रयागराज में कुंभ मेले में मणिराज पुरी नामक एक नागा साधु से बातचीत की. उन्होंने साधु बनने की प्रक्रिया और नागा साधु ओं के जीवन के उद्देश्य पर चर्चा की. 13 साल की उम्र में ही घर छोड़कर उत्तराखंड के पहाड़ों में नागा साधु ओं के साथ रहने लगे थे. नागा साधु बनने के तीन चरणों को पार करके वे पूर्ण नागासाधु हैं.
उन्होंने शिक्षा प्राप्त की, लेकिन अंततः सब कुछ त्याग दिया. कड़ाके की ठंड में, शरीर पर श्मसान का भभूत लगाकर उन्होंने कहा कि उन्हें ठंड नहीं लगती, क्योंकि नागा साधुओं का शरीर और जीवन बच्चों के समान होता है. नागा साधुओं का उद्देश्य सनातन की रक्षा करना है. आदि शंकराचार्य के समय से बनी नागा साधुओं की शाखा सनातन पर आए किसी भी खतरे से बचने के लिए एक हथियारबंद सेना है. उन्हें अखाड़े में हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें बंदूक चलाना भी शामिल है. ताकि सनातन पर कोई खतरा बनने पर लड़ाई लड़ी जा सके. नागा साधु बनना आसान नहीं होता है. अपने शरीर का अंतिम संस्कार और पिंडदान करने के बाद संन्यास की दीक्षा ली जाती है
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