कुंभ: आस्था का सैलाब और राजनीतिक प्रयोग

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कुंभ: आस्था का सैलाब और राजनीतिक प्रयोग
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यह लेख कुंभ मेले के आस्था की गहराई और इसके राजनीतिक पहलू पर प्रकाश डालता है। मदन मोहन मालवीय के साथ लॉर्ड लिनिलिथगो के संवाद से कुंभ की आस्था को दर्शाया गया है। यह लेख मुगल और ब्रिटिश शासन के समय कुंभ पर की गई सख्तियों का भी जिक्र करता है, और महात्मा गांधी द्वारा कुंभ में संगम स्नान करने के बारे में बताता है।

1942 में, प्रयागराज में कुंभ मेले के दौरान, तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनिलिथगो लाखों की भीड़ को देखकर हैरान रह गए। उन्होंने मदन मोहन मालवीय से पूछा कि इतनी भीड़ और बड़े आयोजन के लिए इतना पैसा खर्च हुआ होगा। मालवीय ने कहा कि सिर्फ दो पैसे खर्च हुए हैं। लिनिलिथगो ने हैरानी जताई और मालवीय ने अपनी जेब से एक दो पैसे का कैलेंडर निकाला, जिसमें गंगा स्नान की तारीख लिखी थी। उन्होंने कहा कि लोग इसे देखकर खुद ही आ जाते हैं, इसके लिए किसी को निमंत्रण नहीं देना पड़ता। यह आस्था का सैलाब है। एक बार फिर प्रयाग

में महाकुंभ की तैयारियां चल रही हैं। लाखों लोगों के पहुंचने की उम्मीद है। कुंभ की कथाएं, मान्यताएं और कहानियां हर दिन आपकी आंखों के सामने से गुजर रही हैं। वैसे तो कुंभ की मान्यताओं का इतिहास वेदों, पुराणों और तमाम ऐतिहासिक किताबों में मिलता है। लेकिन इस कुंभ का एक राजनीतिक पहलू भी है, जिसका जिक्र जरूरी है। कुंभ आजादी के पहले भी आस्था की भारी भीड़ देखने को मिलती थी। मुगल राज के समय भी कुंभ में हजारों की संख्या में लोग पहुंचते थे। मुगलों को डर था कि इस कुंभ की भारी भीड़ से विरोध के स्वर फूट सकते हैं. लिहाजा उन्होंने कई बार कुंभ पर सख्तियां करने की कोशिशें की। उदाहरण के लिए मुगल काल से पहले तैमूर ने 1398 में हरिद्वार में गंगा किनारे सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतारा था। तैमूर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-तैमूरी’ में इसका जिक्र किया है। जब अंग्रजों का समय आया तो भी यह डर बना रहा। अंग्रेजों को भी हमेशा लगता रहा कि कुंभ से उनकी हुकूमत खतरे में पड़ सकती है। लिहाजा उन्होंने इसे रोकने के लिए कई कोशिशें की। कभी ट्रेन की मनाही की तो कभी और कुछ सख्तियां। लेकिन आस्था का सैलाब रुका नहीं। गंगा स्नान को लेकर अंग्रेजों की इस नफरत को देखते हुए महात्मा गांधी ने 1918 में प्रयागराज में संगम स्नान किया था। हालाँकि, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुंभ से कई बार बदलाव की मांग भी उठी है। आजाद भारत में कुंभ के 'राजनीतिक प्रयोग' को नकारा नहीं जा सकता है

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