प्लास्टिक के बर्तनों में खाना पकाने से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि कुछ बर्तनों में खाना बनाकर खाने से लंग, कोलन, ब्लैडर और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा होता है.
कैंसर एक बेहद खतरनाक बीमारी है जिसके कारणों का अभी तक पता पूरी तरह से नहीं चल सका है. इसी वजह से इससे बचाव करना मुश्किल होता है. हाल ही में एक स्टडी में शोधकर्ताओं ने बताया कि प्लास्टिक के बर्तन ों में खाना पकाने या गर्म करने से कई तरह के कैंसर हो सकते हैं. साइटिस्ट इस कैंसर के सही कारणों को ढूंढने में लगे हुए हैं. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि कुछ बर्तनों में खाना बनाकर खाने से लंग, कोलन, ब्लैडर और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा होता है. यह चिंता की बात है कि लगभग सभी रसोई में ये बर्तन होते हैं.
इनके अंदर गर्म खाना डालने पर जहरीले कण और केमिकल पिघलते हैं जो खाने के साथ शरीर के अंदर चले जाते हैं. डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने इन बर्तनों को प्रजनन क्षमता, पाचन और श्वसन तंत्र खराब करने वाला भी पाया है. इनमें खाना बनाने या गर्म करने की गलती कभी न करें. प्लास्टिक कुकवेयर और पीटीएफई कोटेड नॉन स्टिक बर्तनों में खाना नहीं बनाना चाहिए. इनके ऊपर खतरनाक केमिकल और प्लास्टिक की परत होती है. इसके छोटे-छोटे कण शारीरिक अंगों के अंदर जाकर क्रॉनिक इंफ्लामेशन और कैंसर बना सकते हैं. रिपोर्ट में बताया कि यह रिसर्च ACS पब्लिशिंग एंवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में पब्लिश हुई है. पिछली कुछ स्टडी में बता चुके हैं कि खाना, हवा, पानी से हर हफ्ते करीब 5 ग्राम प्लास्टिक के कण शरीर के अंदर जाते हैं. इतनी प्लास्टिक से एक क्रेडिट कार्ड बन जाता है. एक साल में यह मात्रा 260 ग्राम तक पहुंच जाती है यानी 52 क्रेडिट कार्ड की प्लास्टिक के बराबर. प्लास्टिक के इन बर्तनों को बनाने के लिए केमिकल एडिक्टिव और प्लास्टिसाइजर का इस्तेमाल होता है. यह डीएनए को म्यूटेट करके कैंसर का विकास कर सकते हैं. खासकर पुराने, खुरचे या टूटे प्लास्टिक के बर्तन इस्तेमाल नहीं करने चाहिए. सीनियर इकोटॉक्सिकोलॉजिस्ट डॉ. मैथ्यू कोले ने चेतावनी दी है कि प्लास्टिक के बर्तन से घर के खाने में हर साल माइक्रो प्लास्टिक के 5000 टुकड़े आते हैं. काले प्लास्टिक के बर्तन इस्तेमाल करने से यह खतरा बढ़ता है. इन्हें कार्बन ब्लैक से बनाता जाता है. माइक्रो प्लास्टिक आंतों की म्यूकस लेयर को खराब करते हैं, जिससे ट्यूमर का विकास हो सकता है. यह इंटेस्टाइनल सेल्स को मारकर क्रॉनिक इंफ्लामेशन करते हैं. आंतों के इम्यून सिस्टम को नुकसान पहुंचाकर भी कैंसर का खतरा बढ़ाता है. हवा के साथ माइक्रोप्लास्टिक सूंघने से फेफड़े खराब हो सकते हैं. यह कण फेफड़ों के टिश्यू को डैमेज करते हैं, जिससे यहां भी क्रॉनिक इंफ्लामेशन हो सकती है. अंत में यह जाकर सेल्स और उनके डीएनए को खराब करने की वजह से माइक्रोप्लास्टिक में हॉर्मोन बिगाड़ने वाले केमिकल होते हैं जो ब्रेस्ट सेल्स में बदलाव करके इस खतरनाक बीमारी का रिस्क बनाते हैं. शरीर में इन कणों के जाने और प्रोस्टेट कैंसर होने के पीछे भी संबंध देखा गया है
कैंसर प्लास्टिक के बर्तन खाना पकाना स्वास्थ्य खतरा
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