1951 में जन्मे ज़ाकिर हुसैन की गिनती महान तबला वादकों में की जाती है. उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने तबले को हिंदुस्तानी साज़ से यूनिवर्सल बना दिया.
भारत के जाने-माने तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का निधन हो गया है उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब से सामने परिचय के संदर्भ में एक बार की ही मुलाक़ात है, जो आज भी नहीं भूलती.
ये सुनकर कि उस्ताद ज़ाकिर हुसैन मुझे सुनने को उत्सुक हैं और साथ में किशोरी ताई भी बैठीं हैं, मेरी रूह कांप गई थी.ख़ैर, जैसे-तैसे अपनी तैयारी को संभाले मैं क़रीब पंद्रह मिनट के वक्तव्य के बाद जब पीछे विंग में पहुंचा, तो वे बड़े प्यार से आकर गले लगे और वक्तव्य को सराहते हुए मुझसे पूछ बैठे -'आप किस घराने के शागिर्द हैं?'
ताल वाद्य की महान परंपरा में पूर्वज उपस्थितियों में उस्ताद अहमद जान थिरकवा, कंठे महाराज, पंडित समता प्रसाद गुदई महाराज, उस्ताद अल्ला रक्खा खां और पंडित किशन महाराज की रेपर्टरी को सर्वथा नए और प्रयोगशील ज़मीन पर उतारने का सफल उद्यम ज़ाकिर हुसैन ने बख़ूबी किया. वे कुछ कुछ परंपरा के विद्रोही भी रहे, जिस तरह का काम पंडित रविशंकर सितार और पंडित राम नारायण सारंगी के लिए करते रहे. उन्होंने कम उम्र में ही यह जान लिया था कि घराने की पोथी पढ़ना ही काफ़ी नहीं है, उसमें आधुनिकता की खिड़की खोलने का काम भी करना चाहिए. उनके प्रयोग, पाश्चात्य संगीतकारों के साथ के काम ने तबले के लिए नई राह खोली. विश्व, ये भी समझ पाया कि भारतीय संगीत में नए आविष्कार स्वायत्त किए जा सकते हैं.
जॉन मैक्लोगुलिन, फराओ सैंडर्स, डेव हॉलैंड, मिकी हार्ट, एड्गर मेयर, पैट मार्टिनो, क्रिस पॉटर और बेला फ़्लेक न जाने कितनी शख़्सियतों के साथ ज़ाकिर हुसैन ने शानदार पारी साझा की.
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